Saturday, October 10, 2015

जानिये भारतवर्ष की जागृत जनता को

कई बार दिल में ख्याल आता है की विश्व में भारत की इतनी तरक्की, उन्नति का राज़ क्या है ? क्या इसका कारण हमारे सेवा के लिए आतुर नेतागण हैं (उनके विषय में यहाँ जान सकते हैं) ? हो सकते हैं ।  पर अगर वास्तविक शोध किया जाये तो  मुझे लगता है की पता चलेगा की इसका कारण और कोई नहीं, बल्कि हम सब, यानी भारत की जागृत जनता ही है।  भारत की जनता, पश्चिमी देशो की भोग-विलास में डूबी आलसी जनता जैसी नहीं है जो crime होते देख , मजे से अपने फ़ोन से पुलिस बुला लेते हैं । नहीं जी । हमारे यहाँ पुलिस आदि को ज्यादा तकलीफ नहीं देते । जनता स्वयं ही इतनी सजग है की वहीँ के वहीँ फैसला कर देती है । पर ये है की क्राइम जनता के पसंद का होना चाहिए ।

पसंदीदा क्राइम में सबसे ऊपर समझिए धर्म से संभंधित अपराध । और सही भी है आखिर ईश्वर इंसान से बड़ा है , तो ईश्वर के खिलाफ अपराध, इंसान के खिलाफ अपराध से बड़ा होगा ही । अब हमारे क़ानून लिखने वालो को इतना सा तर्क समझ नहीं आया था , तो इसका दोष उनकी अंग्रेजी शिक्षा को देना पड़ेगा । खैर भला हो जनता का, जिसमे से अधिकतर ने ऐसी कोई शिक्षा - दीक्षा नहीं ली है ( या ली भी है तो भारतीय परम्परानुसार इस हाथ से लेकर दुसरे हाथ से दे दी, स्वयं कुछ भी नहीं रखा )। तो धर्म को लेकर अपने (और सिर्फ अपने) अधिकारों के प्रति जनता जागरूक, सक्रीय एवं प्रतिक्रियाशील भी है । आप खाली पड़ी किसी जमीन पे  कोई मूर्ती स्थापित कर दे या कोई नाममात्र की मस्जिद की दिवार बनाकर नमाज़ी बुला लें| बस ! मजाल सरकार की जो वो जमीन वापिस लेके उसपे तथाकथित आधुनिक विकास समन्धी कोई कुकृत्य कर ले । सड़के, स्कूल , हॉस्पिटल , मॉल आदि सब पश्चिम की नक़ल है जो इंसानी सुख सुविधाओ के लिए बनाये जाते हैं । इन सबको तोडा -फोड़ा जा सकता है । मंदिर - मस्जिद इन सबके परे  हैं ।  पश्चिमी मूर्ख अब  तक मानवाधिकारों की बात करते हैं । हम ऐसे नश्वर प्राणियों के अधिकारों से ऊपर उठ चुके हैं । हमारे यहाँ ईश्वराधिकारो और गौ - अधिकारों  का बोल - बाला ज्यादा रहता है । पश्चिमी चिंतक  कहते हैं, सौ गुनहगार छूट जाए पर  कोई बेगुनाह ना मारा  जाए । हम कहते हैं सौ (या हजार भी) इंसान मर जाय , पर किसी  मंदिर, मस्जिद , गाय , गीता, क़ुरान  आदि को ठेस ना पहुंचे । और ऐसा नहीं है की हमें इंसानो की फिक्र ही नहीं है । आप झूठ को भी खबर फैला दें, की एक हिन्दू - मुस्लिम युगल जोड़ा भाग के विवाह के प्रणय सूत्र में बंध रहा है । फिर देखिये तमाशा, कैसे दोनों और के शुभचिंतक जमा होकर पूरे शहर की स्थिति चिंताजनक बना देते हैं  ।     communal riots जैसे शब्दों का इस्तमाल वो लोग करते हैं जो इन बातों को समझते नहीं । अजी ये तो सक्रियता है जनता की । खैर आपको और उदाहरण देते हैं जनता की सक्रियता के ।

मान लीजिये पश्चिम में कोई सड़क दुर्घटना हो जाए । यहाँ सब लोग दोनों पक्षों को आपस में settle करने के लिए छोड़ देते  है (और ना सेटल कर पाए तो बेचारे पुलिस वालो को आना पड़ता है )। भारत में ऐसा नहीं है , यहाँ राह चलती जनता भी बड़ी सक्रिय है । दुर्घटना हुई नहीं की झुण्ड लग जाता है । अगर एक पक्ष ऐसा है जिसे पीटा जा सकता है (यूं समझिए कुछ प्राणी पिटने योग्य दिखाई देते है ), तो ऐसा भी हो सकता है की झुण्ड में कई लोग उसपर अपना हाथ साफ़ करके  अपना नागरिक दायित्व निभा दें । हाँ सड़क दुर्घटना कोई गंभीर रूप से घायल हो गया, तो बात और है । फिर लोग ज्यादातर अपना पल्ला झाड़कर सरकने में विशवास रखते है, ताकि अगले दिन दुर्घटना में मरने वालो की खबर पढ़कर सरकार या सड़क को दोष दे सकें । आखिर पुलिस - कचहरी आदि के चक्कर में कौन फंसे , वो भी नश्वर प्राणी की जान बचाने के लिए , जिसे बाई  डेफिनिशन एक दिन मरना ही है । यही बात चोर-उच्चक्को-जेब कतरों को लेकर भी है । कोई पिटने टाइप का दिखा, तो हाथ साफ़ करने को सब सक्रिय हैं, कोई वास्तविक गंभीर  क्रिमिनल  जान पड़ता है, तो सरक लो ।


और हमारा बड़प्पन देखिये । इतनी सजग जनता है, और आज तक किसी बात का क्रेडिट खुद नहीं लिया । भारत-पाक विभाजन में २ लाख इंसानो को मार दिया, और क्रेडिट अंग्रेजों की नीति को दिया । उसके बाद तो हर वारदात का क्रेडिट कभी भाजपा को, कभी कांग्रेस को ! तो कभी पाकिस्तान को । अब देखते हैं ऐसे जागृत जनता के साथ मेरा देश विकास की किस सीढ़ी पे पहुंचेगा !

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