Saturday, January 9, 2016

जानिये वाहन लीला को

पक्की बात है आपने बचपन में ये गीत सुना होगा - ' ये धरती वीर जवानो की ...' । यदि आप मेरी तरह समीक्षात्मक प्रवति के है तो आपके मन में ये विचार जरूर आया होगा, की ऐसा क्या वीरता का काम हम भारत भूमि पर करते हैं जो स्वयं के लिए ऐसे शौर्य-गीत लिख डाले ! इस वीरता को आप  तब तक नहीं समझ सकते जब तक किसी पश्चिमी देश का भ्रमण ना करें । कभी यूरोप या अमरीका की सड़कों और वाहनो को देखा है ? सब कैसे  पंक्तिबद्ध  चलते हैं ! कायर कहीं के ! दुर्घटना या मृत्यु से इतना ही डर लगता है, तो घर में ही क्यों  नहीं बैठ गए दुबक के ?

देखो भाई, पंक्तिबद्ध  चलना  चींटी की विशेषता है । शेर तो बिना सोचे समझे किसी भी दिशा में निकल पड़ता है । पूरा जंगल उसका है । यही हाल भारत के शेरो, मेरा मतलब वाहन चालकों का है । पूरी सड़क को अपना मानते हैं । और सड़क को ही क्यों, फूटपाथ , उसके परे  नाली, उसके परे  भी कोई भूमि गलती से खाली हो, सब को अपने राज्य के अधिकारक्षेत्र में गिनते हैं । किसी भी दिशा में घुसना, फंसना , फंसाना , निकलना , भेड़ना ये  सब रेगुलर काम हैं । और वीरता सिर्फ वाहनचालकों की नहीं । पदयात्री भी यूं समझें की सर पे कफ़न बाँध के निकलता है । मैं चुनौती देता हूँ किसी अंग्रेज को - एक बार सड़क पार करके दिखादे हिन्दुस्तान में । ये देश , ये भूमि, है ही वीरपुत्रो की ।

 भारत की एक और  विशेषता है, यहाँ लोग लोग  जितने वीर हैं, उतने ही समझदार भी हैं । सरकार को पहले ही पता है  की सड़क पे कोई चलेगा नहीं , इसलिए इसे बनाने के लिए कोई ख़ास खर्च भी नहीं करती । अब सोचो, जितने में सड़क बनेगी, उतने में तो PWD के सब अफसर और कर्मचारी अपना और अपने बाल - बच्चो का भविष्य संवार लेंगे । ज़ेबरा क्रासिंग आदि सब किताबों में ही अच्छा लगता है , एक सच्चा भारतीय वाहनचालक ना तो आणि-तिरछी रेखाओं से रुकता है, ना ही कोई पदयात्री ऐसी रेखाओं को ढूंढने का प्रयास करता है । ऐसे ही वाहन विक्रेता भी गाडी के ब्रेक से ज्यादा ध्यान उसके हॉर्न पे देते हैं । भारतीयों  ने रुकना सीखा ही नहीं जी । हॉर्न दो और आगे बढ़ो । सामने वाला या तो  रास्ता देगा, नहीं तो मरेगा !
indian traffic


मरने-मारने से याद आया । अगर आपके वाहन की किसी और वाहन की टक्कर हो जाये तो आप क्या करेंगे ? सबसे पहले अपने  और सामने वाले के  बाहुबल का मूल्यांकन करेंगे (यदि  आपके या उसके वाहन में और सवारियां भी हैं, तो उन्हें भी इस मूल्यांकन  जोड़िये) । अब अगर आप कमजोर निकले तो अपनी गाडी के सुरक्षा दायरे में रहते हुए, गालियां आदान-प्रदान कीजिये। अगर आप ताकतवर हैं, तो शान से अपनी गाडी के बाहर निकल कर गालियां आदान-प्रदान कीजिये । गलती किसकी थी, किसकी नहीं , ये अप्रासंगिक है।  ऐसे अधिकतर मामले गालियां ले-देकर ही सुलटा लिए जाते हैं । पश्चिम की तरह नहीं, की हर बात में पैसे ही लिए-दिए जाएं । और ना ही हमारी पुलिस इतनी खाली है की इन सब चक्करो में पड़े। पर हाँ, आप स्वयं को कितना ही बड़ा शेर समझें,  सलमान भाई के रास्ते में ना ही पड़े तो अच्छा है ।



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