tag:blogger.com,1999:blog-29903311814536367672024-03-05T13:08:07.259-08:00Khatta - MeethaAbhishekhttp://www.blogger.com/profile/03349311504104197377noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-2990331181453636767.post-83847508798087981532022-12-03T17:33:00.002-08:002022-12-03T18:08:06.371-08:00GyaanPipasu<p> बचपन में एक शब्द पढ़ा था ज्ञानपिपासु | पर विलोम में इसका विपरीतार्थक शब्द कहीं नहीं पढ़ा | ये बड़ी चूक है | आप ही बताएं , आपने ज्ञान की प्यास रखने वाले देखे हैं , या ज्ञान की उल्टी करने की चाहत रखने वाले? </p><p>पर गलती शायद भाषाशास्त्रियों की ना हो | ज़माना भी तो बदला है | इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी का युग है | इस युग में ज्ञान सर्वत्र है | ज्ञानी सभी हैं | सुबह उठो, तो वात्सप्प के ४ ग्रुप में इतना ज्ञान मिल जाता है, जो पिछले युग में जीवन भर में ना मिले | ट्विटर पे तो ज्ञानमणि मिलती है , मानो २८० वर्णो में गीता से लेकर गोर्की तक , सब निचोड़ दिया गया हो | इस ज्ञानगंगा में रोज डुबकी लगा लगा के, हर कोई प्रबुद्ध हो गया है..... मेरा मतलब है खुद को प्रबुद्ध मानने लगा है | और ये एक समाज के विकसित होने का बड़ा प्रमाण है | जो अभिव्यक्ति की आजादी, विचार की आजादी, विचार व्यक्त करने की आजादी आदि आदि विकसित समाज देता है, वो सब किसलिए ? ताकि हर किसी के पास ये मानने , और ऐसा दावा करने की आजादी रहे की वह भी इंटेलेक्चुअल क्लास में आता है | पर मसला यही समाप्त नहीं होता | अब ज्ञान है , तो उसे उलटना भी पड़ेगा | ख़ास तौर पे यदि आप ३५ पार कर चुके हो | पश्चिम में एक शब्द चलता है मिड लाइफ क्राइसिस | लोग समझने का प्रयत्न कर रहे हैं की ये क्या है | कुछ लोगों का कहना है की मिड लाइफ में एक ख़ास तरह की घुटन होने लगती है | मैं कहता हूँ ये ज्ञान ही है जो बाहर ना निकल पाने के कारण घुट रहा है | जैसे खाये हुए भोजन को किसी न किसी रास्ते निकलना आवश्यक है, नहीं तो पाचन तंत्र में कहीं न कहीं घुटेगा , ऐसे ही निगला हुआ ज्ञान अगर उगला ना जाए तो दिमाग में क्राइसिस पैदा करेगा ही | पिछली पीढ़ी में ये समस्या ज्यादा थी नहीं , क्युकी एक तो पचाने के लिए ज्ञान इतना था नहीं , और जो था वो आदमी सबसे पहले तो अपने बच्चो पे, और अगर फिर भी बच जाए तो आस पड़ोस के बच्चो पे निकल देता था | अब आजकल के टीनएजर तो हो गए विद्रोही , माँ बाप उलटें तो किसपे उलटें ? मनोविज्ञानिकों को इस दिशा में शोध अवश्य करना चाहिए | </p><p>ख़ैर , मुद्दा था रोज़ आने वाले बाइट साइज़ ज्ञान का | मोटे तौर पे देखा जाए तो जिन २-३ स्त्रोत से सबसे ज़्यादा प्रवाह से ज्ञान आता हैं उन्हें इस प्रकार बांटा जा सकता है :</p><p>पहला और आजकल सबसे प्रबल गुट है, नव इतिहासकारों का | वैसे दुनिया इन्हे दक्षिणपंथी भी कहती है| इन्हे हाल फिलहाल ही पता चला है की भारतवर्ष इतिहास में कितना महान था | प्राचीन भारत में सब अच्छा था | या यूं कहो की जो अच्छा था वो भारत का था, जो बुरा था वो या तो अंग्रेजो ने थोप दिया या मुगलों ने | फिर भी बात न बने तो कांग्रेस, गाँधी या नेहरू ने | एक शिकायत ये रहती है की इन्हे इतिहास बचपन में पढ़ाया नहीं गया ढंग से | वो बात और है, कि कथित बेढंगा भी कभी पढ़ा नहीं | खैर जब बच्चों के ना पढ़ने का दोष उनका नहीं , उनकी किताबो का माना जाए, वो ही प्रगति है | एक मित्र ने लम्बा फॉरवर्ड भेजा की कैसे संस्कृत ज्ञान की कुंजी है | मुझे लगा अब तक तो भाईसाहब संस्कृत के प्रकांड पंडित हो गए होंगे| भाईसाहब से बात की तो पता चला की छह साल से जर्मनी में हैं , और अंग्रेजी के अलावा जर्मन भी धाराप्रवाह बोल लेते हैं | संस्कृत स्वयं सीखने का समय सा नहीं मिल पाया उन्हें, आखिर अपनी नौकरी की फिक्र करें या ये सब सीखें | जब मैंने पुछा की भाई तुम्हारा पुत्र तो अब स्कूल जाने लगा होगा , जो गलती तुम्हारे माता पिता ने की, तुम न करना, उसे तो सही शिक्षा देना | तो वो बताने लगे की भाई हम तो जर्मनी जैसे देश में फ़ँसे है, यहाँ कहाँ किसी को क्या पढ़ा पाएंगे | फिर बताने लगे की जर्मनी की नीतियाँ इतनी बुरी हैं की अगर ले ऑफ हुए तो सीधा भारत (जी हाँ, उनका महान भारत!) आना पड़ सकता है , इसीलिए भारतीय इमिग्रेंट्स दुगुनी मेहनत से नौकरी करते हैं | </p><p>दूसरा गुट, जिन्हे दुनिया वामपंथी भी कहती है ( और जो परंपरागत रूप से स्वयं को बुद्धिजीवी भी मानता था), ज्ञान के इस भूचाल से विस्मित, व्यथित और विचलित हैं | २०१४ से किसी के अच्छे दिन आये हो या ना आये हो, इनके बुरे दिन जरूर आ गए | दुनिया को शोषक और शोषण की समझ देने वाले आज खुद को शोषित कहने लगे | खैर, इनकी थ्योरी तो हमेशा से जटिल सी रही है तो आजकल कथित शोषित के प्रति संवेदना भाव का ही प्रचार कर पा रहे हैं | इस संवेदना में ही इनकी वेदना छुपी है | जहां विदेशो में वाम विचारो को 'प्रोग्रेसिव ' माना जाता है , वहीँ इन बेचारो को नेहरू के समय पे रुका माना जाता है (अगर सीधे सीधे राष्ट्रविरोधी न भी कहे कोई)! </p><p>तीसरा गुट इस सबको मोह माया मानता है और माया को ही मोह का सही पात्र मानता है | ये नवनिर्मित अर्थशास्त्री हैं जो दस वर्ष के बुल मार्किट में मुनाफा कमाके स्वयं को वारेन बुफेट से कम नहीं समझते | इनके पास शुद्ध देसी घी के भाँती छना हुआ ज्ञान होता है | ज़्यादा समय ना ये समझने में लगाते ना समझाने में | इनके पास तो धन लक्ष्मी की लूट है , लूट सके तो लूट | </p><p>यूं कहने को चौथा गुट भी कह सकते हो जो आत्मविश्वास की कमी के चलते, किसी गुट से जुड़ नहीं पाते और व्यँग - कटाक्ष के बहाने अपनी उल्टी करते हैं | पर ऐसे दीन - हीन - क्षीण के बारे में क्या ही लिखें !</p><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjs2JEK4Q-JDv4IZ50RSNw4s8Zqv8PBiR4TB7NDX939GtS6b4UbrfE24rxB2akwsm1y8ik57DNgNfm999CSqRdBvKNfxfvl0PwHZZOAPCgktL-otAfocLlN9baSqZ4mfgX-gqM_4KSy8K9smVwHdJmv7Vx_PCH4JTG-45UYWwULwoXdDvABCl63lYtV8g/s1024/DALL%C2%B7E%202022-12-04%2006.50.51%20-%20Knowledge%20flowing%20from%20twitter.png" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="1024" data-original-width="1024" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjs2JEK4Q-JDv4IZ50RSNw4s8Zqv8PBiR4TB7NDX939GtS6b4UbrfE24rxB2akwsm1y8ik57DNgNfm999CSqRdBvKNfxfvl0PwHZZOAPCgktL-otAfocLlN9baSqZ4mfgX-gqM_4KSy8K9smVwHdJmv7Vx_PCH4JTG-45UYWwULwoXdDvABCl63lYtV8g/s320/DALL%C2%B7E%202022-12-04%2006.50.51%20-%20Knowledge%20flowing%20from%20twitter.png" width="320" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">चित्र सौजन्य से : DALL.E 2 </td></tr></tbody></table><br /><p><br /></p>Abhishekhttp://www.blogger.com/profile/03349311504104197377noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2990331181453636767.post-34902891630477826152016-01-09T07:54:00.001-08:002016-01-09T07:54:40.709-08:00जानिये वाहन लीला को<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पक्की बात है आपने बचपन में ये गीत सुना होगा - ' ये धरती वीर जवानो की ...' । यदि आप मेरी तरह समीक्षात्मक प्रवति के है तो आपके मन में ये विचार जरूर आया होगा, की ऐसा क्या वीरता का काम हम भारत भूमि पर करते हैं जो स्वयं के लिए ऐसे शौर्य-गीत लिख डाले ! इस वीरता को आप तब तक नहीं समझ सकते जब तक किसी पश्चिमी देश का भ्रमण ना करें । कभी यूरोप या अमरीका की सड़कों और वाहनो को देखा है ? सब कैसे पंक्तिबद्ध चलते हैं ! कायर कहीं के ! दुर्घटना या मृत्यु से इतना ही डर लगता है, तो घर में ही क्यों नहीं बैठ गए दुबक के ?<br />
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देखो भाई, पंक्तिबद्ध चलना चींटी की विशेषता है । शेर तो बिना सोचे समझे किसी भी दिशा में निकल पड़ता है । पूरा जंगल उसका है । यही हाल भारत के शेरो, मेरा मतलब वाहन चालकों का है । पूरी सड़क को अपना मानते हैं । और सड़क को ही क्यों, फूटपाथ , उसके परे नाली, उसके परे भी कोई भूमि गलती से खाली हो, सब को अपने राज्य के अधिकारक्षेत्र में गिनते हैं । किसी भी दिशा में घुसना, फंसना , फंसाना , निकलना , भेड़ना ये सब रेगुलर काम हैं । और वीरता सिर्फ वाहनचालकों की नहीं । पदयात्री भी यूं समझें की सर पे कफ़न बाँध के निकलता है । मैं चुनौती देता हूँ किसी अंग्रेज को - एक बार सड़क पार करके दिखादे हिन्दुस्तान में । ये देश , ये भूमि, है ही वीरपुत्रो की ।<br />
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भारत की एक और विशेषता है, यहाँ लोग लोग जितने वीर हैं, उतने ही समझदार भी हैं । सरकार को पहले ही पता है की सड़क पे कोई चलेगा नहीं , इसलिए इसे बनाने के लिए कोई ख़ास खर्च भी नहीं करती । अब सोचो, जितने में सड़क बनेगी, उतने में तो PWD के सब अफसर और कर्मचारी अपना और अपने बाल - बच्चो का भविष्य संवार लेंगे । ज़ेबरा क्रासिंग आदि सब किताबों में ही अच्छा लगता है , एक सच्चा भारतीय वाहनचालक ना तो आणि-तिरछी रेखाओं से रुकता है, ना ही कोई पदयात्री ऐसी रेखाओं को ढूंढने का प्रयास करता है । ऐसे ही वाहन विक्रेता भी गाडी के ब्रेक से ज्यादा ध्यान उसके हॉर्न पे देते हैं । भारतीयों ने रुकना सीखा ही नहीं जी । हॉर्न दो और आगे बढ़ो । सामने वाला या तो रास्ता देगा, नहीं तो मरेगा !<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj37zBekdCJYAjLnovfp7gN-0zpStqSJHlnIAFvoaqzxOrNHUJAxF_O1THlCxC1OvNH9L4nHrxjjwqudRMqJNrJfpIQ_D8MoyBmS9KxWD49FyKUjKstO80F5fklziWhT4TWmqtxVzewgmdU/s1600/traffic.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="indian traffic" border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj37zBekdCJYAjLnovfp7gN-0zpStqSJHlnIAFvoaqzxOrNHUJAxF_O1THlCxC1OvNH9L4nHrxjjwqudRMqJNrJfpIQ_D8MoyBmS9KxWD49FyKUjKstO80F5fklziWhT4TWmqtxVzewgmdU/s1600/traffic.jpg" /></a></div>
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मरने-मारने से याद आया । अगर आपके वाहन की किसी और वाहन की टक्कर हो जाये तो आप क्या करेंगे ? सबसे पहले अपने और सामने वाले के बाहुबल का मूल्यांकन करेंगे (यदि आपके या उसके वाहन में और सवारियां भी हैं, तो उन्हें भी इस मूल्यांकन जोड़िये) । अब अगर आप कमजोर निकले तो अपनी गाडी के सुरक्षा दायरे में रहते हुए, गालियां आदान-प्रदान कीजिये। अगर आप ताकतवर हैं, तो शान से अपनी गाडी के बाहर निकल कर गालियां आदान-प्रदान कीजिये । गलती किसकी थी, किसकी नहीं , ये अप्रासंगिक है। ऐसे अधिकतर मामले गालियां ले-देकर ही सुलटा लिए जाते हैं । पश्चिम की तरह नहीं, की हर बात में पैसे ही लिए-दिए जाएं । और ना ही हमारी पुलिस इतनी खाली है की इन सब चक्करो में पड़े। पर हाँ, आप स्वयं को कितना ही बड़ा शेर समझें, सलमान भाई के रास्ते में ना ही पड़े तो अच्छा है ।<br />
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Abhishekhttp://www.blogger.com/profile/03349311504104197377noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2990331181453636767.post-26344514292915423762015-10-10T15:14:00.000-07:002015-10-10T21:05:59.643-07:00जानिये भारतवर्ष की जागृत जनता को <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कई बार दिल में ख्याल आता है की विश्व में भारत की इतनी तरक्की, उन्नति का राज़ क्या है ? क्या इसका कारण हमारे सेवा के लिए आतुर नेतागण हैं (उनके विषय में <a href="http://abhishek-haasya.blogspot.com/2013/07/blog-post.html" target="_blank">यहाँ </a>जान सकते हैं) ? हो सकते हैं । पर अगर वास्तविक शोध किया जाये तो मुझे लगता है की पता चलेगा की इसका कारण और कोई नहीं, बल्कि हम सब, यानी भारत की जागृत जनता ही है। भारत की जनता, पश्चिमी देशो की भोग-विलास में डूबी आलसी जनता जैसी नहीं है जो crime होते देख , मजे से अपने फ़ोन से पुलिस बुला लेते हैं । नहीं जी । हमारे यहाँ पुलिस आदि को ज्यादा तकलीफ नहीं देते । जनता स्वयं ही इतनी सजग है की वहीँ के वहीँ फैसला कर देती है । पर ये है की क्राइम जनता के पसंद का होना चाहिए ।<br />
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पसंदीदा क्राइम में सबसे ऊपर समझिए धर्म से संभंधित अपराध । और सही भी है आखिर ईश्वर इंसान से बड़ा है , तो ईश्वर के खिलाफ अपराध, इंसान के खिलाफ अपराध से बड़ा होगा ही । अब हमारे क़ानून लिखने वालो को इतना सा तर्क समझ नहीं आया था , तो इसका दोष उनकी अंग्रेजी शिक्षा को देना पड़ेगा । खैर भला हो जनता का, जिसमे से अधिकतर ने ऐसी कोई शिक्षा - दीक्षा नहीं ली है ( या ली भी है तो भारतीय परम्परानुसार इस हाथ से लेकर दुसरे हाथ से दे दी, स्वयं कुछ भी नहीं रखा )। तो धर्म को लेकर अपने (और सिर्फ अपने) अधिकारों के प्रति जनता जागरूक, सक्रीय एवं प्रतिक्रियाशील भी है । आप खाली पड़ी किसी जमीन पे कोई मूर्ती स्थापित कर दे या कोई नाममात्र की मस्जिद की दिवार बनाकर नमाज़ी बुला लें| बस ! मजाल सरकार की जो वो जमीन वापिस लेके उसपे तथाकथित आधुनिक विकास समन्धी कोई कुकृत्य कर ले । सड़के, स्कूल , हॉस्पिटल , मॉल आदि सब पश्चिम की नक़ल है जो इंसानी सुख सुविधाओ के लिए बनाये जाते हैं । इन सबको तोडा -फोड़ा जा सकता है । मंदिर - मस्जिद इन सबके परे हैं । पश्चिमी मूर्ख अब तक मानवाधिकारों की बात करते हैं । हम ऐसे नश्वर प्राणियों के अधिकारों से ऊपर उठ चुके हैं । हमारे यहाँ ईश्वराधिकारो और गौ - अधिकारों का बोल - बाला ज्यादा रहता है । पश्चिमी चिंतक कहते हैं, सौ गुनहगार छूट जाए पर कोई बेगुनाह ना मारा जाए । हम कहते हैं सौ (या हजार भी) इंसान मर जाय , पर किसी मंदिर, मस्जिद , गाय , गीता, क़ुरान आदि को ठेस ना पहुंचे । और ऐसा नहीं है की हमें इंसानो की फिक्र ही नहीं है । आप झूठ को भी खबर फैला दें, की एक हिन्दू - मुस्लिम युगल जोड़ा भाग के विवाह के प्रणय सूत्र में बंध रहा है । फिर देखिये तमाशा, कैसे दोनों और के शुभचिंतक जमा होकर पूरे शहर की स्थिति चिंताजनक बना देते हैं । communal riots जैसे शब्दों का इस्तमाल वो लोग करते हैं जो इन बातों को समझते नहीं । अजी ये तो सक्रियता है जनता की । खैर आपको और उदाहरण देते हैं जनता की सक्रियता के ।<br />
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मान लीजिये पश्चिम में कोई सड़क दुर्घटना हो जाए । यहाँ सब लोग दोनों पक्षों को आपस में settle करने के लिए छोड़ देते है (और ना सेटल कर पाए तो बेचारे पुलिस वालो को आना पड़ता है )। भारत में ऐसा नहीं है , यहाँ राह चलती जनता भी बड़ी सक्रिय है । दुर्घटना हुई नहीं की झुण्ड लग जाता है । अगर एक पक्ष ऐसा है जिसे पीटा जा सकता है (यूं समझिए कुछ प्राणी पिटने योग्य दिखाई देते है ), तो ऐसा भी हो सकता है की झुण्ड में कई लोग उसपर अपना हाथ साफ़ करके अपना नागरिक दायित्व निभा दें । हाँ सड़क दुर्घटना कोई गंभीर रूप से घायल हो गया, तो बात और है । फिर लोग ज्यादातर अपना पल्ला झाड़कर सरकने में विशवास रखते है, ताकि अगले दिन दुर्घटना में मरने वालो की खबर पढ़कर सरकार या सड़क को दोष दे सकें । आखिर पुलिस - कचहरी आदि के चक्कर में कौन फंसे , वो भी नश्वर प्राणी की जान बचाने के लिए , जिसे बाई डेफिनिशन एक दिन मरना ही है । यही बात चोर-उच्चक्को-जेब कतरों को लेकर भी है । कोई पिटने टाइप का दिखा, तो हाथ साफ़ करने को सब सक्रिय हैं, कोई वास्तविक गंभीर क्रिमिनल जान पड़ता है, तो सरक लो ।<br />
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और हमारा बड़प्पन देखिये । इतनी सजग जनता है, और आज तक किसी बात का क्रेडिट खुद नहीं लिया । भारत-पाक विभाजन में २ लाख इंसानो को मार दिया, और क्रेडिट अंग्रेजों की नीति को दिया । उसके बाद तो हर वारदात का क्रेडिट कभी भाजपा को, कभी कांग्रेस को ! तो कभी पाकिस्तान को । अब देखते हैं ऐसे जागृत जनता के साथ मेरा देश विकास की किस सीढ़ी पे पहुंचेगा !</div>
Abhishekhttp://www.blogger.com/profile/03349311504104197377noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2990331181453636767.post-25629449339593144882014-12-21T18:03:00.000-08:002014-12-21T18:03:56.428-08:00जानिये प्रतिभाशाली सॉफ्टवेयर इंजीनियर को <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कुछ समय पहले मैंने आपको <a href="https://www.blogger.com/blogger.g?blogID=2990331181453636767#editor/target=post;postID=2941095336979296028;onPublishedMenu=posts;onClosedMenu=posts;postNum=9;src=postname" target="_blank">सॉफ्टवेयर इंजीनियर </a>के बारे में बताया था । पर सभी सॉफ्टवेयर इंजीनियर एक जैसे नहीं होते, अपनी प्रतिभा के अनुसार सब अलग अलग तरक्की करते हैं । कुछ लोग इस तरक्की को पैसे या औहदे से नापते हैं, पर मै तो महात्मा गांधी का अनुयायी हूँ । मै मानता हूँ की मनुष्य की असली पहचान उसके काम से होती है । तो अगर आप सुबह दफ्तर जाते हैं और देर शाम तक गधे की तरह काम करते हैं तो आप वो ही है … … जी हाँ गधे । वैसे इस क्षेत्र में गधो की कोई कमी भी नहीं , यूं समझिए की गधो को विशेष प्रेम सा है इस व्यवसाय से । अगर आप पुराने जमाने की शादी-ब्याह में आते जाते रहे हैं तो आपने देखा होगा की अक्सर कोई दूल्हे का मित्र होता है जो जाता तो ये सोचकर है की बारात में नाचेगा-खायेगा लेकिन वहां जाकर बाकी बारातियो के कपडे इस्त्री करता है । बस समझ जाइये यह व्यक्ति अगर बहुराष्टीय कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है तो वहां गधा ही है । अच्छा कुछ लोग इस खुशफहमी में भी रहते हैं की काम करने से काम सीखते हैं और काम सीखने से तरक्की होती है । भाई ऐसा मानना तो वैसे ही है की आपके घर के निर्माण में ईंटे ढोने वाला मजदूर अगर ज्यादा ईंटे ढोने लगे तो कांट्रेक्टर बन जायेगा । क्या गधा कभी ज्यादा कपडे ढोकर धोबी बना है ?<br />
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प्रतिभा की अगली सीढ़ी में ऐसा इंजीनियर आता है जिसे सब मानते हैं की व्यस्त है मगर कोई नहीं जानता की किस काम में । इस श्रेणी का इंजीनियर कम से कम २ काम में माहिर होता है - एक फैंकना , दूसरा कामचोरी । जब इनसे काम का एस्टीमेट माँगा जाए तो ये दो से तीन गुना देते हैं ताकि काम मुश्किल भी दिखे और कोई और काम भी ना पकड़ाया जाए । आपके पुराने जमाने के शादी-ब्याह की बात करें तो कुछ भाई-बंधू ऐसे होते थे जो काम के वक़्त मुश्किल से ही खोजे जा सकते थे पर खाने के वक़्त हमेशा नजर आते थे । ऐसे ही ये प्राणी morale events, शिपिंग पार्टी आदि में ऐसे जोश से नजर आएगा जैसे प्रोडक्ट रिलीज़ होने की सबसे ज्यादा ख़ुशी दुनिया में इसी को है । ऐसा प्राणी गलियारों में तेजी से चलता हुआ नजर आता है जैसे हमेशा किसी ख़ास मीटिंग के लिए लेट हो रहा हो । वास्तविकता में दूसरी बिल्डिंग जाकर चाय पीता है । अब कुछ लोगों में ये प्रतिभा जन्म-जात होती है , कुछ अनुभव से सीख लेते हैं । कुछ नालायक नहीं भी सीखते, उनकी मदद भला कौन कर सकता है ?<br />
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इसी श्रेडी में जब एक-दो और खूबियां आ जाएं जैसे की आत्म-विशवास और अंग्रेजी मुहावरों की विस्तृत जानकारी, तो आप अगली श्रेडी में पहुँच जाते हैं । अब आपकी कंपनी भी आपको मात्र इंजीनियर नहीं कहती, विशिष्ट/विशेष/वरिष्ठ आदि आपके नाम के आगे लगाती है । आप मीटिंग्स में धीर-गंभीर मुद्रा में रहते हैं , यही सोच रहे होते हैं की कौनसे अंग्रेजी के मुहावरे से अपनी बात शुरू करें । आपसे कुछ पुछा जाये तो आप पूरे विशवास से कहते हैं, 'आई विल गेट बैक टू यू' । फिर २-४ लोगों को ईमेल लिखते हैं और उनके जवाब संकलित करके मीटिंग में पूछने वाले को भेज देते हैं । इसी प्रकार एक मीटिंग में सुनी बात दूसरी मीटिंग में अपने आईडिया के तौर पे रख देते हैं । इसी तरह इधर की बात उधर करते हुए आप कंपनी में क्या वैल्यू ऐड कर रहे हैं ये तो स्वयं आप भी नहीं जानते, मगर जानने की जरूरत भी किसे है । अब आप काम नहीं करते, बल्कि दावा करते हैं की काम ड्राइव करते हैं । इस श्रेडी के लिए जरूरी प्रतिभा अनुभव से ही आती है।<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBjod3w96Ad-m41RGVmHE5gKrIuwtuL4wunsgOtNBeQ-n-pYKIbUEcrO1HBUnjSP2LhDbfSI_98QsP_3rYqBpWMO3x15HMkUIaU3QoaOzyCkZraOUxc_rZPjI3bbZNfytQy0kHzmE0CYxU/s1600/se.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="software engineer" border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBjod3w96Ad-m41RGVmHE5gKrIuwtuL4wunsgOtNBeQ-n-pYKIbUEcrO1HBUnjSP2LhDbfSI_98QsP_3rYqBpWMO3x15HMkUIaU3QoaOzyCkZraOUxc_rZPjI3bbZNfytQy0kHzmE0CYxU/s1600/se.jpg" tag="software engineer" /></a></div>
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जब आत्म-विशवास और मुहावरो में आप और आगे निकल जाएं तो आप इंजीनियरिंग करियर की आखिरी सीढ़ी पर पहुँच सकते हैं । आपके औहदे से पहले अब इतने विशेषण हैं की आप खुद नहीं जानते । लोग आपको आर्किटेक्ट या चीफ आर्किटेक्ट आदि कहते है लेकिन आपको आर्किटेक्चर आदि में कोई रुचि नहीं । अब आपसे कोई कुछ पूछता है तो आप 'आई विल गेट बैक टू यू' नहीं कहते बल्कि उसी से वापिस इतने सवाल करते हो की आइन्दा कुछ ना पूछे । मसलन आप कहोगे की तुझे ये करने की जरूरत ही क्या पड़ी , ये तो डिज़ाइन लेवल पे ही कोई गलती होगी । अगला समझायेगा तो कहोगे तुमने डिज़ाइन डॉक्यूमेंट किया है ? इसका यूज केस डायग्राम दो , क्लास डायग्राम दो , ये दो, वो दो, जब तक अगला आत्म-ग्लानि से माफ़ी ना मांग ले । और फिर भी बाज ना आये , तो २-४ सवाल उसके प्रोजेक्ट को लेके ही दाग दो , मसलन तुम्हारे इस प्रोजेक्ट का मकसद ही क्या है , यूजर को क्या फायदा होगा , कंपनी को क्या फायदा होगा, बिज़नेस जस्टिफिकेशन क्या है । अपने प्रोजेक्ट एवं नौकरी पे सवालिया निशान दिखते ही सामने वाला भाग खड़ा होगा । इस प्रकार आप अब ना काम करते हों ना ही उसे ड्राइव करने का दावा करते हैं । अब आप दावा करते है की आप 'ensure' करते हैं की काम होगा । कैसे - ये तो ना आप जानते हैं ना भगवान । </div>
Abhishekhttp://www.blogger.com/profile/03349311504104197377noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2990331181453636767.post-77832448405698829982014-11-02T09:19:00.001-08:002014-11-02T09:29:41.126-08:00भारत का काला धन विदेश में !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<meta property="og:image" content="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJzSHIoT6iG9eWOg8fOolOlOPgz3nuF37dV6p4pf6Wt7X0vO3FOzIfDDUlvMP7XPg89Ll9gS-1TXrFYM6X9ygfUiqL-pA2Yd4yL0qaXgwVhAn3_l4hRdxSVSdJ7Mh2A-cSvEMML74KfFYu/s1600/black-money.jpg" />
एक सच्चा देशभक्त होने के नाते मुझे ये जानकार बहुत दुःख हुआ की कई भारतियों का काला धन विदेश में है । इस मामले की तो वास्तव में गहरी जांच होनी चाहिए । इस देश में सुविधाओं की, व्यवस्थाओं की, ऐसी क्या कमी रह गयी जो मेरे देशवासियों को काला धन विदेशो में रखना पड़ा ? कोई पढाई करने विदेश जाये, बात समझ आती है, इंडिया में opportunity नहीं होगी । कोई नौकरी करने विदेश जाये, समझ आता है, opportunity नहीं होगी । मगर कोई काला धन जमा कराने विदेश जाए !! मेरी समझ से तो परे है भाई । हमारे देश में मंदिर के चढ़ावे से लेके, चुनाव के चंदे तक सब ब्लैक में ही होता है । प्रॉपर्टी खरीदने जाओ, तो पेमेंट ब्लैक में करो । व्यापार करने की पूरी बिज़नेस cycle ब्लैक में करने की व्यवस्था है - जमीन खरीदें ब्लैक में और रजिस्ट्रेशन में छूट पाएं , विदेश से मशीन ब्लैक में मंगाए, कस्टम में छूट पाएं , आधा माल ब्लैक में बेचें, इनकम टैक्स में छूट पाए, और कस्टम, टैक्स आदि के ऑफिसर्स को वोही ब्लैक मनी रिश्वत में दें ताकि वे आगे अपने घर, अपनी प्रॉपर्टी में काला धन इन्वेस्ट करके इस परंपरा को ऐसे ही आगे बढ़ाएं । हजारों दलालों, बिचौलियों की नौकरियां काले धन पे टिकी हैं । इतनी अच्छी व्यवस्था के बावजूद अगर कुछ लोगो को लगा की विदेश में ब्लैक मनी रखने में फायदा है, तो यह तो आत्मावलोकन का विषय है ।<br />
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मैंने ये ज़िक्र एक वित्तीय मामलो के जानकार मित्र से किया तो वह बोला की विदेशी बैंको में प्राइवेसी का ख्याल ज्यादा रखा जाता है । मैंने कहा भाई ये तो सरासर गलतफमही फैलाई जा रही है, भारतिय व्यवस्थाओं को नीचा दिखाने के लिए । विदेशो में प्राइवेसी की कोई क़द्र नहीं है । सब पोलिटिकल पार्टी चिल्ला चिल्ला के बताती हैं की हमें किसने कितना पैसा दिया । सब प्रॉपर्टी का लेन-देन सरकार को बताना पड़ता है । प्राइवेसी की क़द्र तो हिन्दुस्तान में ही है । कोई रईस किसी राजनेता को कितना पैसा, कब और कैसे देता है ये सब उन दोनों का प्राइवेट मसला है । हमारे यहाँ सरकार या जनता इन सब के बीच में नहीं पड़ती । पारदर्शिता के हम सख्त खिलाफ हैं, फिर चाहे वो कपडे हो या सरकारी काम काज़ । इसलिए अमरीकी काला बाजारी स्विस बैंक अकाउंट खोलते हैं तो उनकी मजबूरी समझ आती है । अगर भारतीय काला बाजारी उनकी होड़ में स्विट्ज़रलैंड में अकाउंट खोल लिए, तो मैं तो इसे मूर्ख नक़ल ही कहूँगा । हमारे राजनेताओं की मेह्नत का ही नतीजा है की ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल आदि सँस्थाए हमें ९४वे स्थान पे डालती हैं । और ये कोई ७००-८०० लोग जाने किस प्रलोभन में आकर विदेशों में धन रखने लगे । <br />
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चलो अच्छा है इस प्रकरण की जांच आयकर विभाग के लोग कर रहे हैं । इन लोगो से बेहतर कौन जान सकता है की भारत में काला धन कहाँ और कैसे छिपाया जाये । उम्मीद है की ये लोग विदेशी खाताधारकों को कुछ सद्बुद्धि और नुस्खे देंगे ताकि आगे से भारत का काला धन यही फले-फूले । मैं तो कहता हूँ, जांच के बाद इन्हे सरकार को स्कीम/स्कैम सुझाना चाहिए जिससे भारतीय ही नहीं , पूरे विश्व के भ्रष्ट लोग अपना ब्लैक मनी इन्वेस्ट करने भारत ही आएं ।<br />
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होनहार नवयवुकों को यही कहना चाहूँगा की इस सब ड्रामें में ना आए। वेस्ट हमसे ज्ञान - विज्ञान में आगे हो सकता है, भ्रष्टाचार में हम उनसे सदियों आगे हैं । आप लोग जब भी काला धन कमाएं , उसे देश में ही रखे , उससे सुरक्षित कोई और जगह विश्व में हो ही नहीं सकती । भला आजतक हिंदुस्तान में रखा किसी का काला धन जप्त हुआ है ?<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJzSHIoT6iG9eWOg8fOolOlOPgz3nuF37dV6p4pf6Wt7X0vO3FOzIfDDUlvMP7XPg89Ll9gS-1TXrFYM6X9ygfUiqL-pA2Yd4yL0qaXgwVhAn3_l4hRdxSVSdJ7Mh2A-cSvEMML74KfFYu/s1600/black-money.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJzSHIoT6iG9eWOg8fOolOlOPgz3nuF37dV6p4pf6Wt7X0vO3FOzIfDDUlvMP7XPg89Ll9gS-1TXrFYM6X9ygfUiqL-pA2Yd4yL0qaXgwVhAn3_l4hRdxSVSdJ7Mh2A-cSvEMML74KfFYu/s1600/black-money.jpg" tag="black money"/></a></div>
<br /></div>Abhishekhttp://www.blogger.com/profile/03349311504104197377noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2990331181453636767.post-19611264971252906792014-06-07T19:03:00.000-07:002014-06-07T20:55:49.335-07:00जानिए ब्लॉग लेखक को <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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होमोहबिलिस, होमोएरेक्टस, होमोसपीएन आदि के विकास क्रम के विषय में आपने सुना ही होगा । बस ब्लॉग लेखको को समझना है, तो यूं सोच लीजिए की Homosapien के बाद मनुष्य विकसित होकर ब्लॉग लेखक बन गया । और आप ऐसा माने या ना माने, कम से कम ब्लॉग लेखक तो अपने बारे में यही मानते हैं कि साधरण मनुष्य की तुलना में उनका विकास कुछ ज्यादा हो गया है । इसीलिए मुफ्त में ज्ञान बाँट, बाकी मनुष्यजाति को राह दिखाना अपना कर्त्तव्य समझते है ।<br />
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अच्छा, ये लेखक जिस विषय में लिखता है, अक्सर उसने उस क्षेत्र में लिखने के सिवा कोई योगदान नहीं दिया होता । मसलन लेखक खुद किसी कंपनी में मामूली इंजीनियर होगा पर ब्लॉग लिखकर बड़े से बड़े सीईओ को बता देगा की तुम्हारी कंपनी क्यों पिट रही है । वैसे तो यह प्रतिभा साधारण लोगो में भी देखने को मिल जाती है। कोई खुद कितना भी बड़ा अनाडी क्यों ना हो, दूसरो को सलाह देने या आलोचना करने से कब पीछे हटता है ? बस यूं समझ लीजिए जिन लोगो में ये प्रतिभा जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है वो frustrate होकर ब्लॉग लिखना चालू कर देते हैं । अनुभव से बता रहा हूँ, फ़्रस्ट्रेशन दूर करने का ब्लॉग से बेहतर कोई उपाए नहीं । मिसाल से तौर पे, आपने खुद कभी क्रिकेट का बल्ला ना पकड़ा हो पर आप तेंदुलकर की बैटिंग का विशलेषण कर उसको बता देंगे की उसकी कवर ड्राइव में क्या गलती है । अब जाहिर है आपकी फसबूकि मित्र-मण्डली में (आपके जैसे) और भी मूर्ख होंगे ही, जो आपके विश्लेषण का विश्लेषण कमेंट्स में करना शुरू कर देंगे । हो सकता है २-३ वाह-वाही भी मिल जाए । पिछले दिनों चुनावी मौसम था । हर कोई चुनाव विशेषज्ञ बना बैठा था । ब्लॉग लेखको की चांदी - राजनीति पे ब्लॉग लिख दो, देश और साहित्य दोनों की सेवा कंप्यूटर पे बैठे बैठे सरलता से हो गयी । कुछ तो टीवी पे २-४ ओपिनियन पोल देखके उन्हें अपना आकलन कहके दोहराने लगे । और वैसे भी नतीजों के बाद कौन तुमसे पूछने आ रहा है की तुमने क्या छापा था । और नतीजे आ जाए फिर हारने वाले को २-४ राय दे दो, माने पढ़ने वाले को लगे की अगर चुनाव से पहले भाई इनसे सलाह ले लेता तो हारता ही नहीं । खुद की हैसियत चाहे मुन्सिपलिटी के चुनाव में १० वोट लेने की ना हो!<br />
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यूं तो ब्लोगेर्स कई प्रकार के होते हैं पर मोटे तौर पे इन्हे निम्नलिखित तीन-चार उपजातियो में बांटा जा सकता है :<br />
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रायचंद - आपका काम है राय देना, कोई ले या ना ले, ये उसकी प्रॉब्लम । आजकल नया फैशन है, ये काम 'ओपन लेटर' लिखके करने का । प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति आदि अक्सर आपकी राय के पात्र होते है ।<br />
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आलोचक या निन्दकारी - ऐसा नहीं है की निंदा रस की उपासना केवल ब्लोग्गेर्स तक सीमित हो। घरेलू महिलाओं से लेकर ऑफिस के कैफेटेरिया तक सभी प्राणी इस रस का आनंद लेते पाये जा सकते हैं । यही काम ब्लॉग में करके आप पाठको को निंदा-सागर में डुबकी लगाने का आनंद देते हैं ।<br />
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फ़र्ज़ी शोधकारी - अक्सर ये लोग जीवन में पीएचडी आदि करने की हसरत रखते थे, पर समय या अक्ल की कमी के चलते ये हसरते दिवास्वप्न रह गई । इनका मोडस-ओपेरंडी ये है की Wikipedia पे २-४ आर्टिकल पढ़के ब्लॉग रूप में छापके ऐसा दिखाओ की दुनिया में सारा मौलिक शोध आपका ही है ।<br />
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ट्रैवलिंग ब्लॉग लेखक - ये ब्लॉग कृतक आजकल जन्मी फोटोग्राफर जाती का अपभ्रंश रूप है । जिन्हे अपने चित्र लगाने भर से चैन नहीं मिलता वो साथ में ये भी बखान कर डालते हैं की कहाँ जाके क्या खाया , क्या उल्टा , क्या धोया क्या सुखाया । इन्हे डींग हांकने का विशेष शौक होता है, कहीं दो मील चलके गए तो बखान ऐसे लिखेंगे जैसे क़िला फ़तेह किया हो । पृष्टभूमि सदा एक ही रहती है - वहां पहुचने में कितनी तकलीफ हुई 'बट हाउ एवरीथिंग वास वर्थ इट'! खैर इनके पाठको को इनके निजी क्रिया-कलापो में कोई रुचि हो न हो, इनके चित्र देखके जल भी लेते हैं और आनंद भी उठा लेते हैं ।<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh2tLxTayUAPcBlCsQDucCkuMkX_X0tdttk_5-My8XHZXojhxIekbo2_nIjL_Ht8S9duty3dBqYqL03Ct1sedJVs7eq-8kW3UkWnCJCxbxyYOh1n7NYk02x76oUrrwSxaT68Gw9VMRTFLoK/s1600/download.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh2tLxTayUAPcBlCsQDucCkuMkX_X0tdttk_5-My8XHZXojhxIekbo2_nIjL_Ht8S9duty3dBqYqL03Ct1sedJVs7eq-8kW3UkWnCJCxbxyYOh1n7NYk02x76oUrrwSxaT68Gw9VMRTFLoK/s1600/download.jpg" /></a></div>
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खैर मुझे आशा की आने वाले समय में ब्लॉग लेखको की जाति और फले - फूलेगी । और हाँ मुझे इन उपजातियों में डालने की चेष्टा न करें !<br />
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Abhishekhttp://www.blogger.com/profile/03349311504104197377noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2990331181453636767.post-91275580119051852932013-08-08T20:09:00.000-07:002013-08-08T20:09:46.531-07:00उत्तर प्रदेश में दुर्गा शक्ति <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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ये आजकल media में किसी दुर्गा शक्ति का मामला बड़ा उछल रहा है । सुनने में आया कोई ईमानदार नौकरशाह थी, सरकार को बर्दाश्त नहीं हुई, suspend हो गयी । मुझे बड़ा confusion हुआ खबर सुनके । पहले तो ये बताओ कि जब ईमानदार थी तो मैडम ने आईएस की परीक्षा क्यों दी ? और चलो परीक्षा भी दे दी, मै कहता हूँ सिलेक्शन भी हो गया, पर फिर उत्तर प्रदेश cadre में आने को किसने कहा ? ये तो ऐसा हुआ की तैरना हम चाहते नहीं, और कूदेंगे महासागर में !<br />
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अच्छा आज एक और खबर आई। हिमाचल में भी किसी युनिस खान नामक SDM ने रेत माफिया से पंगा ले लिया । वो भी दुर्गा मैडम के ही batch के हैं । मै तो कहता हूँ इस बात की गहराई से जांच होनी चाहिए । ऐसा मालूम होता है की ये २०१० के बैच को लाल बहादुर अकादमी में कोई जरूरी कोर्स कराना इस बार भूल गए । वर्ना आईएस और लोकल MLA का तो ऐसा सम्बन्ध होता है जैसे दिया और बाती !! इस बैच के लोगो को भारत में governance के बारे में कोई ज्ञान ही ना हो, ऐसा लग रहा है । एक काबिल अफसर का काम है, जनता द्वारा चुने हुए नेताओं को ज्यादा से ज्यादा फायेदा पहुचाना । और चलो इन लोगो ने flying squads वगरह भी बना लिए । इन सबका मकसद यहाँ तक होता की डरा धमका के थोड़ी फ़ालतू रिश्वत वसूल लें कोई दिक्कत नहीं थी । मगर ये मैडम तो सरकारी राजस्व को फायेदा पहुचने के इरादे में थी । अजी सरकारी राजस्व तो आपको ससपेंड करने से भी बचा लेंगे । और एक नेता ने तो कहा भी, की केंद्र सरकार सभी आईएस को वापिस बुला ले, हम सरकार फिर भी चला लेंगे । सही बात है । उत्तर प्रदेश को तो यूं भी दशकों से माफिया ही चला रहा है, तो ये आईएस वगरह की तनख्वाह पे पैसे क्यूँ बर्बाद करें । इसे कहते हैं "saving taxpayer's hard earned money "!!<br />
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अच्छा श्री आजम खां का बयान भी गौरतलब है । आपने फरमाया कि रेत, खनिज आदि तो कुदरत की देन है, राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट । इसे कहते हैं free market economy । में तो कहूँगा वास्तविक रूप से स्वंत्रता तो सिर्फ उत्तर प्रदेश को ही मिली है (हालाँकि १५ अगस्त पूरा देश मनाता है )। उत्तर प्रदेश में व्यक्ति जो करना चाहे उसके लिए स्वतंत्र है । किसी और के बनाये कायदे-कानून की उसपे कोई रोक थाम नहीं है ।<br />
एक <a href="http://abhishek-haasya.blogspot.com/2013/07/blog-post.html" target="_blank">सेवाभिलाशी सांसद </a> ने दुर्गा जी के सस्पेंशन को लोकतंत्र की जीत भी बताया । वैसे भारतीय लोकतंत्र विश्व में सबसे बड़ा तो है ही, सबसे रोचक भी है । जरा सोचिये यहाँ एक SDM ने नॉएडा में कुछ किया, उसका परीणाम ये की संसद में फ़ूड सिक्यूरिटी बिल लटक जायेगा । मारो कहीं, लगे कहीं ।<br />
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अच्छा इस सब से एक काम ये भी हो रहा है की मीडिया वाले शोर मच रहे हैं कि आईएस अधिकारीयों को ज्यादा स्वायत्ता दे दो । इनका सोचना है की ऐसा करने से ज्यादा पारदर्शिता आएगी । मेरे तो समझ नहीं आता कैसे ? कोई सभी आईएस दुर्गा मैडम जैसे नासमझ तो हैं नहीं । और भाई, पारदर्शिता लाकर भी क्या करना, हमने तो गांधी जी से सीखा है की बुरा ना ही देखो तो अच्छा !!<br />
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अच्छा कांग्रेस का बयान भी अच्छा लगा इस सब में । जब पुछा गया की सोनिया जी इस मामले में ही क्यूँ बोल रही हैं, खेमका के मामले में क्यूँ नहीं, वो भी तो ईमानदार थे । तो कांग्रेस कहती है - ना ना हम तो सिर्फ ट्रान्सफर करते हैं ईमानदार अफसरों का, ससपेंड नहीं । और मुझे तो मुख्य मंत्री जी का भी बयान बड़ा जँचा - आईएस को ससपेंड करना वैसे ही जरूरी है, जैसे मास्टर का स्टूडेंट को पीटना । …. मगर बच्चों को school में पीटने को तो सर्वोच्च न्यायालय ने गैर - कानूनी करार दिया था.…. अब सर्वोच्च न्यायालय का क्या, उन्होंने तो सरकारी जमीन में धार्मिक स्थल बनाने को भी गैर कानूनी कहा था.……….<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg-oLXaGanYVSvubQsxG4x4apcVc7L7tfJ8kPeMR2zgjJoJRFZ5jDeD6R6hzI6Qbo-PgBTxs-ohryzBXvFYB5SatnjMXrErZ-bgcwnvThdYWpIhvP40nffTZTKu1byqPnxpPHRFDLXTXtfU/s1600/download.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Durga shakti supporters" border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg-oLXaGanYVSvubQsxG4x4apcVc7L7tfJ8kPeMR2zgjJoJRFZ5jDeD6R6hzI6Qbo-PgBTxs-ohryzBXvFYB5SatnjMXrErZ-bgcwnvThdYWpIhvP40nffTZTKu1byqPnxpPHRFDLXTXtfU/s1600/download.jpg" /></a></div>
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Abhishekhttp://www.blogger.com/profile/03349311504104197377noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2990331181453636767.post-51060498100593346632013-07-31T18:11:00.000-07:002013-07-31T18:55:53.194-07:00सेवाभिलाशी सांसद <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अभी हाल-फिलहाल एक राज्य सभा के सांसद महोदय ने बताया की सांसद एक-एक राज्य सभा सीट के लिए सौ करोड़ तक की राशि देते हैं | अपने सांसदों का इतना सेवा भाव देख कर मेरा तो मन ही भर आया |<br />
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ऐसा नहीं है की यह अनुभूति मुझे जीवन में पहली बार हुई हो | हमारे भारत देश के परोपकारी राजनेताओं के लिए मेरे मन में सदा ही ख़ास आदर-भाव रहा है | बेचारे नेता क्या कुछ नहीं करते - सिर्फ जनता की सेवा का एक मौका पाने के लिए ! मैंने सुना था, की हमारे उत्तर-प्रदेश में एक MLA के टिकेट के लिए ही लोग २ करोड़ पार्टी को देते हैं | यह तो केवल टिकेट पाने के लिए, माने इस बात की कोई gaurantee नहीं की जनता की सेवा का मौका वास्तव में मिलेगा के नहीं | इसके बाद मुफ्त शराब बांटना, बेरोजगार लोगो को एकत्र करके उनसे रैलियां निकलवाना - ये समझिये की इतनी सेवा तो हर कोई बिना कोई मौका मिले ही कर रहा है , वो भी अपनी जेब से पैसे खर्च करके ! मै तो धन्य हो गया यह जानकार की मेरे भारत देश में , एक-दो नहीं हज़ारो ऐसे परोपकारी लोग हैं जो ऐसा करते हैं , अपनी ख़ुशी से करते हैं , बार बार करते हैं |<br />
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पिछले दिनों बिल गेट्स भारत आया था, बोलता है की भारत के रईस दुसरे देशो के रईसों जैसे खुलके दान नहीं देते | पैसे को बचा के रखते हैं | मैं तो उसकी शकल देखके ही समझ गया था की बिना रिसर्च किये भारत पे टिप्पड़ी कर रहा है(बाकी अंग्रेजो की तरह ) | जिस देश की भूमी ने हजारो कर्मठ, समर्पित, निःस्वार्थ भावना से जनसेवा करने वाले राजनेताओं को जन्म दिया हो, उस देश के रईस, करोडपति क्या इतने गए गुजरे होंगे की 50-100 करोड़ दान में देके उसका दुनिया में बखान करते फिरें? अजी हमारे देश के उद्योगपति तो दान देके रसीद भी नहीं मांगते राजनेताओं से! और क्यूँ मांगे? शास्त्रों में कहा गया है - गुप्त दान महा दान | ये तो इतने निष्ठावान हैं, की आप इनपे चाहे CBI इन्क्वायरी बैठा दें, ये उगलने से गए की किस किस को कितना दान दे रखा है |<br />
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मेरा तो बस सामना हो जाये गेट्स साहिब से, उसे बताऊँगा की भारत की जनसेवा भावना की आलोचना करने से पहले जान लो की कह क्या रहे हो !! भाई, पश्चिमी देशो में जेल में कैद अपराधी समाज और करदाता पे बोझ होते हैं | पर हमारे यहाँ ऐसा नहीं है ! हमारे यहाँ तो जेल में बंद होकर भी अपराधी यही सोचता है की जनता के लिए क्या कर सकता है, वहीँ से चुनाव भी लड़ता है, वहीँ से जीत भी जाता है| माननीय सुरेश कलमाड़ी जी ने अपनी जमानत याचिका में भी यही लिखा था की संसद का सत्र चल रहा है, देश की गंभीर समस्यों पे विचार होगा, मुझे कर्त्तव्य-निर्वहन के लिए जेल से जमानत पे रिहा कर दिया जाये | इसे कहते हैं कर्त्तव्य-परायण महापुरुष - जो महीनो जेल में रहके भी अपने बारे में कुछ ना सोचे, सब देश और जनता के लिए ही सोचे |<br />
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ख़ास बात तो यह है, की सेवा की ये इच्छा इतनी गहरी है हमारे नेताओं में की ये आपस में भी लड़ते हैं - मुझे दिया है मौका जनता ने सेवा का , ना तुझे कैसे दिया जनता ने असल में मुझे दिया है | अभी तो चुनाव आने ही वाले हैं, आपको जल्दी ही इस प्रकार की सेवा प्रदान करने की आतुरता नजर आएगी | कभी गठबंधन करते हैं मिलके सेवा करने के लिए, तो कभी उसे तोड़ देते हैं क्यूंकि बीच सत्र में इनके समझ में आता है की 'जनादेश' तो कुछ और था !! ऐसे सेवक जो हमारे आदेश का पालन करने के लिए अपने जी, जान, आत्मा सब दांव पे लगा दें , भला कभी मिल सकते हैं किसी और देश मे?<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhc5fmnKenAVT9aw0T5c6f_nFjyn3BnIsBX8Xi_lz5BgMHez0LRYF5lZyfKuobHnDTtagRwdoBAQeeMbKy4kSBi_LBjBxIz_n_9wnGtRW-Qxfd5Y0LSvNhvjoPNDs3FSKTWneEXcZ82PskS/s1600/cartoon.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhc5fmnKenAVT9aw0T5c6f_nFjyn3BnIsBX8Xi_lz5BgMHez0LRYF5lZyfKuobHnDTtagRwdoBAQeeMbKy4kSBi_LBjBxIz_n_9wnGtRW-Qxfd5Y0LSvNhvjoPNDs3FSKTWneEXcZ82PskS/s1600/cartoon.jpg" /></a></div>
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Abhishekhttp://www.blogger.com/profile/03349311504104197377noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2990331181453636767.post-23447683335950186362013-02-20T09:47:00.000-08:002013-02-20T09:48:38.348-08:00जानिये सीबीआई इन्क्वायरी को <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सुनने में आया की इटली सरकार ने किसी हेलीकाप्टर निर्माण के कंपनी मालिक को गिरफ्तार कर लिया । इलज़ाम ये की उसने भारत सरकार को रिश्वत में कुछ सौ करोड़ दिए । भाई, उसने दिए, हमारे अफसरों ने लिए - बीच में इटली की सरकार को क्या प्रॉब्लम है ? ये तो वोही बात हुई की तेली का तेल जले, मशालची की जान जले । और यूं भी इटली और भारत का तो समधाने का रिश्ता है । और रिश्तेदारी में रिश्वत कैसी ?<br />
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मै तो इस विषय में <a href="http://www.abhishek-haasya.blogspot.com/2012/11/blog-post.html" target="_blank">पहले भी</a> लिख चुका हूँ की खाना और खिलाना भारतीय संस्कृति का हिस्सा है । अब विदेशी लोग, चाहे वो Walmart हो या AugustaWestland, यहाँ आकर हमारी संस्कृति को अपना रहे है तो ये तो गर्व की बात है । इटली सरकार तो फिर भी विदेशी है, समझ सकते हैं की उसे हमारे तौर-तरीको की समझ नहीं। पर ये केजरीवाल, अन्ना ये सब तो भारत की ही उपज हैं ! अभी कुछ दिन हुए, केजरीवाल चिल्ला रहा था की अम्बानी ने पैसा यहाँ रखा है, वहां रखा है । मैंने कहा भाई मेरे, उसका पैसा, अपने swiss account में ना रखे तो क्या तेरे भारतीय account में रखेगा? तो केजरीवाल कहते हैं, नहीं प्रॉब्लम ये है की वो टैक्स नहीं देता । मै कहता हूँ, भाई रिश्वत तो देता है । अम्बानी ने दिया, सरकार ने लिया - अब तुम उसे टैक्स कहो या रिश्वत या चन्दा ये तो मात्र शब्दों का फेर है ।<br />
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ऐसा नहीं है की इन deals की तहकीकात करने से कोई फायेदा नहीं होता । CBI के अफसरों के विदेशी दौरे बन जाते है, डॉलर में per diem की बचत हो जाती है, सैर सपाटा अलग। अब ये तो सीबीआई वाले भी भली भांती जानते है, की ये तहकीकात चिर काल तक समाप्त नहीं होनी । सीबीआई के अफसर आते रहेंगे, जाते रहेंगे, रिटायर होंगे, आरोपी स्वयं स्वर्गलोक को प्राप्त हो जायेंगे, मगर सीबीआई की इन्क्वायरी - समझो द्रौपदी की साडी - कभी ख़त्म नहीं होगी । वैसे इन्क्वायरी हमेशा चालू रखने से एक और फायेदा होता है। देश में राजनैतिक स्थिरता बनी रहती है । आपको ध्यान होगा, पिछले दिनों बहुत से राजनैतिक दल सरकार के FDI (retail ) का विरोध कर रहे थे । न्यूज़ चैनल बढ़-चढ़ के बता रहे थे, अब सरकार गिर जाएगी । पर भाई, सीबीआई की चालु इन्क्वायरी इसी दिन काम आती है । रातो-रात लालू से लेकर मायावती तक, सब लाइन पे आ गए ।जरा सोच के देखो अगर कहीं घोटाले और इन्क्वायरी ना होती । बात बात पे सरकारें गिर जाती । देश आगे ही नहीं चल पाता ।<br />
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मै तो कहता हूँ देश में VVIP होने के दो ही प्रमाण मान्य है - या तो आप गांधी परिवार के बहुत करीब हैं , या आप पर सीबीआई की इन्क्वायरी चल रही है । अगर ये दोनों बाते आप पर लागू नहीं होती, तो आप मेरी तरह इस असाधारण देश के साधारण नागरिक हैं । इसीलिए आपने अक्सर देखा होगा, जब भी किसी का नाम घोटाले में आता है, वो व्यक्ति बहुत उछल- उछल के कहता है - मेरी इन्क्वायरी सीबीआई से करा लो, मेरी भी करा लो ....आदि आदि । अभी त्यागी बंधू यह मांग कर रहे हैं । और क्यों ना करें - सीबीआई इन्क्वायरी कोई डरने की चीज नहीं , ये तो सरकार की ओर से इस बात की पुष्टि है, की आप बड़े महत्वपूर्ण आदमी हैं । </div>
Abhishekhttp://www.blogger.com/profile/03349311504104197377noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2990331181453636767.post-49478232688007822032012-11-07T11:50:00.000-08:002012-11-07T11:50:47.101-08:00खाओ और खाने दो
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
'जीयो और जीने दो ' - यह तो संसार भर में स्थापित सिद्धांत है । पर भारत देश में हम सदा एक कदम आगे रहते हैं । हम जानते हैं की जीने के लिए जरूरी है खाना, इसलिए खुद भी खाओ और दुसरे को भी खाने दो । अभी पिछले दिनो कुछ बेवकूफ लोग हंगामे कर रहे थे , के जी गडकरी खा गया , वाड्रा खा गया , सब मिलीभगत है, सब मिल के खा रहे है । मैंने कहा भाई इसमें क्या गलत है । हमही तो कहते है की संसद प्रजातंत्र का मंदिर है । तो फिर मंदिर में प्रसाद तो मिल बाँट के ही खाया जाता है, इसमें तेर-मेर क्या करनी । खाना - खिलाना , लेन - देन , यह सब भारतीय परम्परा का हिस्सा है, इस सबसे परस्पर प्रेम बढ़ता <br />
है, भाईचारा बढ़ता है ।<br />
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अब भारतीय परंपरा कितनी महान है, इसका सही मायने में बोध मुझे विदेश आकर हुआ । बात है कोई 4-5 साल पहले की । मै ड्राइविंग का टेस्ट देने अमरीकी सरकारी कार्यालय पंहुचा । अँगरेज़ निरीक्षक मेरे साथ मेरी गाडी में बैठा और टेस्ट लेके बोला - तुम तो बड़े जाहिल हो, तुम्हे तो गाडी चलानी ही नहीं आती । मैंने मन ही मन सोचा , कि जाहिल तो तू है, तुझे टेस्ट लेना ही नहीं आता । हमारे उत्तर प्रदेश में , ड्राइविंग निरीक्षक इतने खाली या बेवकूफ नहीं हैं, की नौसिखियों के साथ उनकी गाडी में बैठे । वे बंद कमरे में बैठे हुए ही आपको लाइसेंस भी दे देते हैं और खाने खिलाने की परंपरा भी पूरी कर लेते हैं । कोई लाइसेंस का आकांक्षी उनके पास ना खाली हाथ आता है और ना उनके पास से खाली हाथ जाता है । पर भाई, अँगरेज़ और नारी, इनसे बहस करना व्यर्थ है ।<br />
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अच्छा ऐसा नहीं है की अँगरेज़ corruption नहीं करते या झूठ नहीं बोलते। पर इस मामले में ये नासमझ अभी बहुत पीछे है । अब उदाहरण के तौर पर, अँगरेज़ भाँती भाँती के खेल खेलते है । सुना है इनके खिलाड़ी doping आदि से अपने प्रदर्शन को 'सुधारने' के लिए निष्कासित होते हैं । अब खेलने को हम हिन्दुस्तानी केवल क्रिकेट खेलते हैं । हमारे यहाँ भी खिलाड़ी निष्कासित होते हैं । मगर कोई प्रदर्शन 'सुधारने' के कारण से नहीं ।हम तो आउट होने के पैसे खा लेते हैं , पिच के हाल बताने के खा लेते है । हमें मालूम है की प्रदर्शन सुधारने से ज्यादा फायदा प्रदर्शन बिगाड़ने में है । रिकॉर्ड - वेकोर्ड , मैडल- वैडल ये सब मिथ्या है । नश्वर है जी । माँ लक्ष्मी ही शाश्वत हैं, इस जगत में भी एवम वैकुंठ में भी । <br />
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ये पिछले एक-दो साल में जंतर मंतर आदि जगह ऐसे ऐसे प्रदर्शन होने लगे की मुझे तो चिंता हो गयी थी की कहीं खाने खिलाने की हमारी परमपरा ना खतरे मे पड़ जाये। जो नौजवान वहां नारे लगा रहे थे "मै अन्ना हूँ ", "मैं भी अन्ना हूँ" उनकी समझ में ये भी नहीं आया की अन्ना तो ब्रहमचारी हैं । शादी तो दूर, बेचारो का किसी अफेयर में भी नाम नहीं आया । भाई आप खुद सोच लें , आप अन्ना के जैसे जीना चाहते हैं, या मानिये लालू जी, अमर सिंह जी के भाँती एक सुखी, <span class="in l" title="Search this word/phrase">समृद्ध</span> परिवार के पोषक पुरुष के भाँती ? और वैसे भी 'professional ethics' , 'conflict of interest' - यह सब पाश्चात्य दर्शन के विषय हैं। हमारे पास इन सब पर विचार करने का फालतू वक़्त नहीं है । और भैया, अगर आप ये चाहते हैं की सरकारी दफ्तरों में आपके काम भी हो जाए और आपका कुछ खिलाना भी ना पड़े, तो आप जैसे स्वार्थी के लिए भारत में तो कोई जगह है नहीं । आप भारत में रहकर अपना वक़्त और हमारा माहौल ख़राब ना करें! वो तो राजा, कनिमोज़ी ये सब हैं तो खैरियत है की हमारी परम्पराओं पर कोई आंच नहीं ।<br />
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खैर दिवाली है जी । खाने खिलाने का त्यौहार है । दिल खोल के खाएं , और खूब खिलाएं !<br />
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Abhishekhttp://www.blogger.com/profile/03349311504104197377noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2990331181453636767.post-29410953369792960282012-09-16T17:37:00.001-07:002012-09-16T17:37:24.849-07:00सॉफ्टवेर इंजिनियर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कोल्हू के बैल के विषय में तो आप सब ने सुना ही होगा। यदि आप मेरी या मुझसे बाद की पीढ़ी के हैं, तो देखने का मौका शायद ना मिला हो। मगर बेचैन मत होइए, आप किसी भी सॉफ्टवेर उत्पादन करने की कंपनी में चले जायिए, आपको एक नहीं, हजारो बैल एक साथ कोल्हू में जुते साक्षात दिख जायेंगे। मेरे जो बदकिस्मत मित्र स्वयं को सॉफ्टवेर इंजिनियर कहते हैं उन्होंने अक्सर सुना होगा :release 'cycle', product 'cycle',software development life 'cycle' वगराह वगराह । कभी सोचा आपने की आखिर ये सब 'cycle' क्यों है? हाँ, सही समझे - कोल्हू में बैल का movement भी cyclical था, क्योंकी गोल चक्कर का कोई छोर नहीं होता, कोई अंत नहीं होता, आप काल चक्र में फंसे हुए हैं, अनंत काल तक। <br />
<br />
वैसे सॉफ्टवेर इंजिनियर और इंजीनियरिंग के विषय में दुनिया में बहुत प्रकार की भ्रांतियां हैं । पहली भ्रान्ति तो नाम की है । नाम सुनने से ऐसा लगता है की कोई वैज्ञानिक एवम तकनीकी काम होगा। पर सच्चाई यह है, की 'जुगाड़' लगाने की कला को अंग्रेजी में सॉफ्टवेर इंजीनियरिंग कहते हैं। हाँ, अब आप समझे की हमारा भारत देश, जिसे कार का engine बनाने में पचास साल लग गए, वो अचानक सॉफ्टवेर इंजीनियरिंग का गढ़ कैसे बन गया। भाई जुगाड़ जुटाने में भारतीयों का दुनिया में कोई मुकाबला है ही नहीं। इसीलिए तो, हमारा देश इस तीव्र गति से सॉफ्टवेर इंजिनियर पैदा कर रहा है (आप थोडा विशलेषण करें तो पायेंगे की केवल एक चीज सॉफ्टवेर इंजिनियर पैदा करने की गति से तीव्र है - घोटालो के धन राशी के बढ़ने की गति। शुक्र मनाइये की अभी सॉफ्टवेर इंजिनियर की संख्या 'हजार करोड़' की इकाई में नहीं नापते)<br />
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शायद, आपको मेरी बातो पे यकीन ना हो रहा हो, आप इसे हंसी-ठहाका समझ रहे हो। चलिए आपको अपनी बात का अकाट्य प्रमाण देता हूँ। जिस तथाकथित प्रतिष्टित प्रौद्योगिकी संस्थान में मैंने सॉफ्टवेर इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की वहां छात्राओं की उपस्थिति आटे में नमक बराबर थी। और जहाँ तक में समझता हूँ , देश के अधिकतर इंजीनियरिंग कॉलेज में यही हाल है। अब जरा सोच के के देखिये की आखिर इस क्षेत्र में महिलाओ की इतनी कमी क्यों है ? भाई आपने कभी कोल्हू की गाय सुनी है? जी नहीं, होती ही नहीं, तो सुनेंगे कैसे? कोल्हू में तो बेचारा बैल ही जुतता है। जो ज्ञान मुझे आज प्राप्त हुआ, मेरे देश की छात्राओं को वो बोध दस साल पहले ही था!<br />
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अब जो लोग इस क्षेत्र में नहीं हैं, वो कहेंगे की भाई कैसी बात कर रहे हो।सॉफ्टवेर के लोग तो इतने cool दिखते हैं । फसबूक खोल के देख लो - कोई गीत गा रहा है, कोई पर्वतारोहण कर रहा है, किसी को फोटोग्राफी में महारथ हासिल है । अब इसका जवाब थोडा पेचीदा है । आप लोगो को याद होगा की बचपन में सातवी- आठवी कक्षा में बच्चो में होड़ रहती है - फर्स्ट आने आने की, सेकंड आने की (और बच्चो में ना भी रहे तो उनके माता - पिता पड़ोसियों से यही होड़ लगा लेते हैं की तुम्हारा बच्चा क्या आया मेरा तो ये आया) । अब ये जो सॉफ्टवेर इंजिनियर है, ये बेचारा इस होड़ से उम्र भर बाहर ही नहीं आ पाता । गलती इसकी नहीं है, कोल्हू के मालिक सभी बैलो को इस होड़ में चक्कर कटाते हैं,कि जो जितनी तेजी से इन release 'cycle', product 'cycle' कि परिकृमा करेगा उसे उतना अधिक चारा मिलेगा। अब सप्ताह में पांच दिन इस होड़ में रहकर, बचे दोनों दिन यह प्राणी दूसरी होड़ में लग जात है : स्वयं को दूसरो से ज्यादा cool दिखाने की होड़।यूं समझिये की वीकेंड पे होने वाले अंधाधुन्द फोटो अपलोड, इस वीकेंड की होड़ का नतीजा हैं। इसीलिए तो ये प्राणी किसी दर्शनीय स्थल पे पहुँच के ,प्राकृति का आनंद बाद में लेता है, फोटो पहले अपलोड करता है। यही नहीं, कुछ सॉफ्टवेर इंजिनियर की तो जिंदगी का दिन फसबूक से शुरू और youtube पे ख़तम होता है । पता नहीं पिछले एक दशक में ये दोनों अविष्कार ना हुए होते तो इन सॉफ्टवेर इंजिनियर का क्या होता । ख़ैर मेरी पीढ़ी तक तो बात फिर भी सही है, आने वाली पीढ़ी से तो आप नाम पूछोगे तो ईमेल में लोगिन करके, अपनी प्रोफाइल में जाके नाम देखना पड़ेगा।<br />
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अब तो आपको भरोसा हो ही गया होगा की मैं आप को सत्य बता रहा हूँ। यदि नहीं तो एक छोटा सा experiment खुद करके देख लें। Bangalore जाके कहिए की आप सॉफ्टवेर इंजिनियर हैं। Electrician से लेकर काम वाली बाई तक आपको हर काम का दुगुने से तिगुना दाम बताएँगे। और तो और traffic police वाला भी बिना बात का चालान काटेगा । जैसे पूरा शहर आपसे चिल्ला के कहेगा की भाई सॉफ्टवेर इंजिनियर होना, स्वयं को महामूर्ख स्वीकार करने जैसा है ।<br />
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Abhishekhttp://www.blogger.com/profile/03349311504104197377noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2990331181453636767.post-43678438594405069422012-07-04T18:14:00.000-07:002012-07-04T18:22:56.679-07:00जानिये NRI को<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
"धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट का" ऐसी कहावत बचपन में पढ़ी थी। पर इसका भावार्थ अब जाके समझ आया। अब NRI होने की प्रक्रिया में घर कोनसा है और घाट कोनसा ये तो पता नहीं पर इतना अवश्य कह सकते हैं की कुत्ता ......ammmm चलिए छोडिये कुत्ते को...आपको NRIs के बारे में बताते हैं। एक जुमला अक्सर सुना होगा आपने - ABCD(American Born Confused Desi) - पर आपको बता दूं , confused होने के लिए अमरीका में पैदा होने की कोई आवश्यकता नहीं। यदि आप भारत में जन्में हैं, खुद को जवान समझते हैं, और पढ़ा लिखा भी मानते हैं, तो confused type के तो आप भी होंगे ही। NRI इन्ही confused लोगो में से उपजी वो प्रजाति है, जो अपने को बाकी से श्रेष्ठ, निपुड एवम होशियार समझती है । इस प्रजाति की पहचान , एकदम आसान । आगे के blog मे मै आपको यही पहचान सिखाता हूँ।<br />
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NRI की पहली निशानी ये, की ये हर बात में दुसरे देश को याद करते हैं। या यूं समझिये की घर पे होते हैं तो घाट को और घाट पे होते हैं तो घर को । मिसाल के तौर पे, आप इन्हें अमरीका में पर्वत श्रृंखला में hike पर ले जाइये । ऊपर पहुच के कहेंगे "यार यहाँ ठण्ड में अगर एक चाय की दूकान होती जहाँ गरम चाय और समोसे मिल जाते तो क्या बात थी "। और सही भी है, 1-2 energy bars से भारतीय पेट को संतुष्टि नहीं मिल सकती।अब इसी प्राणी को हिंदुस्तान के किसी दर्शनीय स्थल ले जायें। रास्ते में पड़े चाय के plastic के cup देखते ही ऐसे घर्णा से बोलेगा "In the States you cant throw stuff like this". यही नहीं आवाज़ में accent भी ऐसा होगा की साथ के लोगो में किसी को इस बात में शंका ना रह जाये की आप अमरीका से तशरीफ़ लाये हैं।<br />
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दूसरा, अगर आपको कभी यह जानना हो की India आखिर क्यों तरक्की नहीं कर रहा, इस प्रजाति का कोई भी नमूना पकड़ लीजिये । यूं समझिये की हर NRI स्वयं को इस विषय में प्रकांड पंडित समझता है। प्रत्येक NRI मानता है की अगर भारत सरकार उससे सलाह ले ले, तो भारत भी पश्चिमी राष्ट्रों की तरह विकसित देश बन जाए। और चूँकि भारत सरकार ऐसा करेगी नहीं, इसलिए "इंडिया का कुछ नहीं हो सकता" इनका favourite तकिया कलाम होता है। कुछ NRI इसका मिलता जुलता अंग्रेजी का जुमला "That IS the problem with India" पसंद करते हैं । अब भारत में इतनी विविधता है, तो थोड़ी विविधता तो NRIs में भी होगी ही।<br />
<br />
तीसरा, हर NRI 2 साल बाद स्थाई रूप से India लौट रहा होता है ।कारण ये की वह तथाकथित रूप से अपने देश को बड़ा miss करता है । दूसरा यह, की पश्चिमी देश तो संस्कृति विहीन, वैचारिक रूप से खोखले, उपभोगवादी सभ्यता हैं, और हमारे NRI मित्रों का ऐसी जगह मन नहीं लगता। अब यह अलग बात है, की dollar की चाह में अपने देश, दोस्तों को छोड़ वह आया, पर materialistic तो अँगरेज ही हैं ।<br />
<br />
अब बताने को तो और भी बहुत कुछ बता सकता हूँ, इस जाती के विषय में जिसका मै एक (अ)सम्मानित सदस्य हूँ । पर आपके समय का मान रखते हुए, मै फिलहाल मौन होता हूँ , टिप्पड़ियो से प्रोत्साहन देंगे तो बाकी के रहस्य जल्दी ही ! <br />
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<br /></div>Abhishekhttp://www.blogger.com/profile/03349311504104197377noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2990331181453636767.post-45509644450865811932012-05-28T16:18:00.000-07:002012-05-28T16:30:00.998-07:00Pranav da ko Bharat Ratna<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
Baat hai 2025 ki, jee haan bhavishya ki! Apne Pranav Mukherjee ko rashtra ka sarvochh samman Bharat Ratna mila hai, kyuki unki neetiyo ke chalte Bharat fir se vaigyanik aavishkaro ka grah ban gaya. Bharat mein aaj paani se chalne vaali car daudti hai, desh mein avishkar pe avishkar ho rahe hain. Pranav da, press conference kar rahe hain, aayie jaanein ki ye sab aakhir kaise hua:<br />
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Vishal vistrit samaroh, chakachaundh beech Pranav da muskaye,<br />
note aur pushp se bani mala pehan, thoda sa sharmaye,<br />
Bharat ko vigyan path pe daalne mein role tha inka adbhut,<br />
Aise mantri ko fir aakhir kyu naa sarvocch samman diya jaaye!<br />
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"How you made this possible" amreeki navyuvti ne saval daaga,<br />
dekh gori kaaya , Pranav da ki boodhi asthiyo mein sahas jaaga,<br />
josh se bole " The mother of invention is necessity,<br />
And dear lady, how can there be neccassity without scarcity?"<br />
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Moorkh shrotagad mein jo ye scholarly uttar naa samajh paaye,<br />
unke chehro pe confusion dekh, Pranav mand mand muskaye,<br />
"humne kari thi research ki kyu nahi hote bharat mein avishkar,<br />
kyu angrej banate hawai jahaaj, kyu german hi banaate acchi car?"<br />
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"angrej log bechare gareeb jinhe kami rehti thi kutch samaan ki,<br />
hum maa laxmi ki santaaniein, hamein aadat aaraam ki,<br />
isiliye meine petrol ke daamo ko pratimah anavarata badhaya,<br />
us din ke baad se ek bhi bhartiye, kabhi chain se naa so paaya!"<br />
<br />
"ghar mein to sabke khade the scooter aur car,<br />
par petrol bina ho gaye saare hi vaahan bekar<br />
is scarcity se fir hue, ek ke baad ek aavishakar,<br />
aaj petrol se nahi, paani se chalti hai made in india car!"<br />
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uttar samajhte hi doosre angrej ne counter question maara,<br />
angrejo ko "gareeb" sun peedit hua tha vo bechara,<br />
"how dare you call us poor, when richest people live in america,"<br />
is nadaan ne moorkhta se Pranava da ko lalkaara!<br />
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Pranav daa ne bhi uttejit ho manch se uttar diya karaara,<br />
"dhan ko sada chhupakar rakhna, aisa praachin paath hamara,<br />
varna jo kahin cabinet apne real assets declare kar de,<br />
tumhare Bill, Buffet jaiso ko to Mayawati akele cover kar de!"<br />
<br />
Itne mien kisi ne last question, future plan pooch daala,<br />
Pranav daa ne haath jod vinamrata se utaari pushp maala,<br />
"aage aage hum paani bhi peena doobhar kar denge,<br />
is desh mein logo ka kaise bhi jeena doobhar kar denge!!"<br />
<br />
<br /></div>Abhishekhttp://www.blogger.com/profile/03349311504104197377noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2990331181453636767.post-21439926757804690232012-01-21T19:47:00.000-08:002012-05-28T13:16:10.190-07:00Jannat mein liqour prohibition<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
Hua youn ki Jannat mein madira pe prohibition laga diya gaya. Aise mein Sriman Mohammad Ali Jinnah, tahelte hue Yamlok, Nehru se milne pahunche. Aage ka haal:<br />
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"hi Jawahar", achanak sunke Nehru ji sakpakaye<br />
dekh Jinnah ko yamlok mein, thoda sa ghabraye<br />
formality mein apna khaali haath milane ko badhaya,<br />
kisi prakar dwesh ko apne kaabo mein rakh paye<br />
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"kaise hua jannat-e-firdaus se is or aanaa,<br />
hum to samjhe the bhool chuke tum hisab puraana"<br />
vaadi kutil, nayan teeksha dekh Jinnah muskaye,<br />
"kyu bhai, lagta nahi ki tum bhi humko bhool paaye"<br />
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"darasal Jannat mein maykhano pe laga diya prohibition<br />
aur yahan to tum gatak rahe ho whisky bina inhibition<br />
socha barso baad hum bhi purane dosto se mil aayein<br />
aur lage haath urvashi menka ke bhi darshan ho jayein"<br />
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"besharm, na-maqool" youn kehkar nehru ne lataada<br />
taan bhhrakuti teekhi, jaise isharo mein bhi fatkaara<br />
"72 kam pad gayi aur janaab yahan najar daudaate hain<br />
hum to 2-4 apsaraon se jaise taise kaam chalate hain"<br />
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"chhodo yaar tum gussa aur peg banao, <br />
aur kya chal raha hai India mein thoda batao<br />
tumhari Indian govt aakhir mujhe kyu nahi karti sammanit<br />
arrey ghooro mat aise yaar jara brandy pilao"<br />
<br />
"tumko"" tumko!" jaise apni shruti pe hi bharosa naa kar paaye<br />
peg banate banate hi, Nehru jor se chillaye<br />
"kyu karne lagi tumko Indian govt sammanit<br />
tum jaise ko to hum jooto ka haar pehnaaye"<br />
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chehre pe Jinnah ke muskaan abhi bhi gayi nahi<br />
"dekho Jwahar bado ka youn apmaan karna sahi nahi,<br />
mujhe yakeen nahi hota tum abhi bhi aise moorkh ho<br />
Badappan hai mera jo aajtak ye baat meine kahi nahi"<br />
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"India ko sada sada maanne honge mere aehsaan<br />
kya tarakki kar paata India, jo naa hota Pakistan?<br />
tumhe nahi akal mein tumhe samjhata hoon,<br />
aaj tumhari buddhi ke kapaat mein khol jaata hoon."<br />
<br />
"Kasab hota Indian citizen, jo naa hota Pakistan<br />
Indian passport se hoti, kitne terrorists ki pehchaan<br />
Akahnd Bharat mein fir milti sharad hamare Osama ko,<br />
socho fir kya jawaab dete Manmohan, Barak Obama ko?"<br />
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"Rawalpindi ke general, Indian army mein jab bharte tum<br />
Zulfikar Bhutto ke jaise, fansee se fir marte tum<br />
Arthvyavastha ki tumhare fir kya hota haal?<br />
India ki hoti vo haalat, jo Pakistan ki hai filhaal"<br />
<br />
Sun faansee ki baat Nehru ekdum sihar gaye,<br />
bhool dwesh saara, do hi minute mein bifar gaye,<br />
"Award chhodo mein mandir tumhare banvaoonga,<br />
Bahu Sonia ko turant telegram bhijvaaonga"<br />
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"Manthan mein vish peekar jaise mahaan hue Shiv Shankar<br />
Aise hi partition kara, ahsaan kia tumne bhayankar"<br />
Jab bhi peene ka man kare, bejhijhak aana mere paas<br />
aur haan bata do agar koi apsara pasand ho khaas!"<br />
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<br /></div>Abhishekhttp://www.blogger.com/profile/03349311504104197377noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2990331181453636767.post-29961055836077501372009-01-07T23:30:00.001-08:002009-01-07T23:30:56.333-08:00Ye kavi kab badalenge!badal gaya jamaana poora<br />par kavi, shayar badal naa paaye<br />tech kraanti ne badli duniya<br />par ye jaahil sambhal naa paaye<br /><br /><br />chaand se dete upma aaj bhi<br />komal kaamini mridu naari ki<br />lohe aur khanij ka bhandaar ho jo<br />tulna kyu usse us bechaari ki?<br /><br /><br />kahaan jalti hai shama mehfil mien,<br />kisne parwaano ko jalte dekha hai<br />humne to becharo ko tube-light teere<br />chhipkali ke mooh mein fisalte dekha hai<br /><br /><br />konsee chilman aur kahaan ka hijaab<br />old fashioned hain aise vichaar bhi<br />paschim ne khol daala sabkutch<br />arthneeti, vastra aur vyahvaar bhi<br /><br /><br />par shashwat satya jo kabhi nahi badla<br />jismein shraddha sabki apaar dikhti hai<br />ghalib, harivansh to the hi jaise bhi<br />kaviyatri shakira bhi pee ke likhti haiAbhishekhttp://www.blogger.com/profile/03349311504104197377noreply@blogger.com1