Sunday, September 16, 2012

सॉफ्टवेर इंजिनियर

कोल्हू के बैल के विषय में तो आप सब ने सुना ही होगा।  यदि आप मेरी या मुझसे बाद की पीढ़ी  के हैं, तो देखने का मौका शायद ना मिला हो।  मगर बेचैन मत होइए, आप किसी भी सॉफ्टवेर उत्पादन करने की कंपनी में चले जायिए, आपको एक नहीं, हजारो बैल एक साथ कोल्हू में जुते  साक्षात दिख जायेंगे। मेरे जो बदकिस्मत  मित्र स्वयं को सॉफ्टवेर इंजिनियर कहते हैं  उन्होंने अक्सर  सुना होगा :release  'cycle', product  'cycle',software  development life 'cycle'  वगराह वगराह । कभी सोचा आपने की  आखिर ये सब  'cycle' क्यों है? हाँ, सही समझे - कोल्हू में बैल का movement भी cyclical था, क्योंकी गोल चक्कर का कोई छोर  नहीं होता, कोई अंत नहीं होता, आप काल चक्र में फंसे हुए हैं, अनंत काल तक।

वैसे सॉफ्टवेर इंजिनियर और इंजीनियरिंग के विषय में दुनिया में बहुत प्रकार की भ्रांतियां हैं । पहली भ्रान्ति तो नाम की है । नाम सुनने से ऐसा लगता है की कोई  वैज्ञानिक एवम  तकनीकी काम होगा। पर सच्चाई यह है, की  'जुगाड़' लगाने की कला को अंग्रेजी में सॉफ्टवेर इंजीनियरिंग कहते हैं। हाँ, अब आप समझे की हमारा भारत देश, जिसे कार का engine बनाने में पचास साल लग गए, वो अचानक सॉफ्टवेर इंजीनियरिंग का गढ़ कैसे बन गया। भाई जुगाड़ जुटाने में भारतीयों का दुनिया में कोई मुकाबला है ही नहीं। इसीलिए तो, हमारा देश इस तीव्र गति से सॉफ्टवेर इंजिनियर पैदा कर रहा है (आप थोडा विशलेषण करें तो पायेंगे की केवल एक चीज सॉफ्टवेर इंजिनियर पैदा करने की गति  से तीव्र है - घोटालो के धन राशी  के बढ़ने की गति। शुक्र मनाइये की अभी सॉफ्टवेर इंजिनियर की संख्या  'हजार करोड़' की इकाई में नहीं नापते)

शायद, आपको मेरी बातो पे यकीन ना हो रहा हो, आप इसे हंसी-ठहाका  समझ रहे हो। चलिए आपको अपनी बात का अकाट्य प्रमाण देता हूँ। जिस तथाकथित प्रतिष्टित प्रौद्योगिकी  संस्थान में  मैंने सॉफ्टवेर इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की वहां छात्राओं की उपस्थिति आटे  में नमक  बराबर थी। और जहाँ तक में समझता हूँ , देश के अधिकतर इंजीनियरिंग कॉलेज में यही हाल है। अब जरा सोच के के देखिये की आखिर इस क्षेत्र  में  महिलाओ की  इतनी कमी क्यों है ? भाई आपने कभी कोल्हू की गाय  सुनी है? जी नहीं, होती ही नहीं, तो सुनेंगे कैसे? कोल्हू में तो  बेचारा बैल ही जुतता है। जो ज्ञान मुझे आज प्राप्त हुआ, मेरे देश की  छात्राओं को वो बोध दस साल पहले ही था!

अब जो लोग इस क्षेत्र में नहीं हैं, वो कहेंगे की भाई कैसी बात कर रहे हो।सॉफ्टवेर के लोग तो इतने cool दिखते  हैं । फसबूक खोल के देख लो - कोई गीत गा रहा है, कोई पर्वतारोहण कर  रहा है, किसी को फोटोग्राफी में महारथ हासिल है । अब इसका जवाब थोडा पेचीदा  है । आप लोगो को याद होगा की बचपन में सातवी- आठवी कक्षा में बच्चो में होड़ रहती है - फर्स्ट आने आने की, सेकंड आने की (और बच्चो में ना भी रहे तो उनके माता - पिता पड़ोसियों से यही होड़ लगा लेते हैं की तुम्हारा बच्चा  क्या आया मेरा तो ये आया) । अब ये जो सॉफ्टवेर इंजिनियर है, ये बेचारा इस होड़ से उम्र भर  बाहर  ही नहीं आ पाता । गलती इसकी नहीं है, कोल्हू के मालिक सभी बैलो  को इस  होड़ में चक्कर कटाते हैं,कि  जो जितनी तेजी से इन release  'cycle', product  'cycle' कि  परिकृमा करेगा उसे उतना अधिक  चारा  मिलेगा। अब सप्ताह में   पांच दिन इस होड़ में रहकर, बचे दोनों दिन यह प्राणी दूसरी होड़ में लग जात है :  स्वयं को दूसरो से  ज्यादा cool दिखाने  की होड़।यूं  समझिये की वीकेंड पे होने वाले अंधाधुन्द फोटो अपलोड, इस वीकेंड की होड़ का नतीजा हैं। इसीलिए तो ये प्राणी किसी दर्शनीय स्थल पे पहुँच के ,प्राकृति  का आनंद बाद में लेता है, फोटो पहले अपलोड करता है। यही नहीं, कुछ  सॉफ्टवेर इंजिनियर की तो जिंदगी का दिन फसबूक से शुरू  और youtube  पे ख़तम होता है ।  पता नहीं पिछले एक दशक में ये दोनों अविष्कार ना हुए होते तो इन सॉफ्टवेर इंजिनियर का क्या होता । ख़ैर मेरी पीढ़ी तक तो बात फिर भी सही है, आने वाली पीढ़ी से तो आप नाम पूछोगे तो ईमेल में लोगिन करके, अपनी प्रोफाइल में  जाके नाम देखना पड़ेगा।

अब तो आपको भरोसा हो ही गया होगा की मैं आप को सत्य बता रहा हूँ। यदि नहीं तो एक छोटा सा experiment खुद करके देख लें। Bangalore जाके कहिए  की  आप सॉफ्टवेर इंजिनियर हैं। Electrician  से लेकर काम वाली बाई तक आपको हर काम का दुगुने से तिगुना दाम बताएँगे। और तो और traffic police वाला भी बिना बात का चालान काटेगा ।  जैसे पूरा शहर आपसे चिल्ला के कहेगा की भाई  सॉफ्टवेर इंजिनियर होना, स्वयं को महामूर्ख स्वीकार करने जैसा है ।



 

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