Wednesday, November 7, 2012

खाओ और खाने दो

'जीयो और जीने दो ' - यह तो संसार भर में स्थापित सिद्धांत है । पर भारत देश में हम सदा एक कदम आगे रहते हैं । हम जानते हैं  की जीने के लिए जरूरी है खाना, इसलिए खुद भी खाओ और दुसरे को भी खाने दो । अभी पिछले दिनो कुछ बेवकूफ लोग हंगामे  कर रहे थे , के जी गडकरी खा गया , वाड्रा  खा गया ,  सब मिलीभगत  है, सब मिल के खा रहे है । मैंने कहा  भाई  इसमें क्या गलत है । हमही  तो कहते है की संसद प्रजातंत्र का मंदिर है । तो फिर मंदिर में प्रसाद तो मिल बाँट के ही खाया जाता है, इसमें तेर-मेर क्या करनी । खाना - खिलाना , लेन - देन , यह सब भारतीय परम्परा का हिस्सा है, इस सबसे परस्पर प्रेम बढ़ता
 है, भाईचारा बढ़ता है ।

अब भारतीय परंपरा कितनी महान है, इसका सही मायने में बोध मुझे विदेश आकर हुआ । बात है कोई 4-5 साल पहले की । मै ड्राइविंग का टेस्ट देने अमरीकी सरकारी कार्यालय पंहुचा । अँगरेज़ निरीक्षक मेरे साथ मेरी गाडी में बैठा और टेस्ट लेके बोला - तुम तो बड़े जाहिल हो, तुम्हे तो गाडी चलानी ही नहीं आती । मैंने  मन ही मन सोचा , कि जाहिल तो तू है, तुझे टेस्ट लेना ही नहीं आता । हमारे उत्तर प्रदेश में , ड्राइविंग निरीक्षक इतने खाली या बेवकूफ नहीं हैं, की नौसिखियों के साथ उनकी गाडी में  बैठे । वे बंद कमरे में बैठे हुए ही आपको लाइसेंस भी दे देते हैं और खाने खिलाने की परंपरा भी पूरी कर लेते हैं । कोई लाइसेंस का आकांक्षी उनके पास ना खाली हाथ आता है और ना उनके पास से  खाली हाथ  जाता है । पर भाई, अँगरेज़ और नारी, इनसे बहस करना  व्यर्थ है ।

अच्छा ऐसा नहीं है की अँगरेज़ corruption  नहीं करते या झूठ नहीं बोलते। पर इस मामले में ये नासमझ अभी बहुत पीछे है । अब उदाहरण के तौर पर, अँगरेज़ भाँती भाँती के खेल खेलते है । सुना है इनके खिलाड़ी doping आदि से अपने प्रदर्शन को 'सुधारने' के लिए निष्कासित होते हैं । अब खेलने को हम हिन्दुस्तानी केवल क्रिकेट खेलते हैं । हमारे यहाँ भी खिलाड़ी निष्कासित होते हैं । मगर कोई प्रदर्शन 'सुधारने' के कारण  से नहीं ।हम तो आउट होने के पैसे खा लेते हैं , पिच के हाल बताने के खा लेते है । हमें मालूम है की प्रदर्शन सुधारने  से ज्यादा फायदा प्रदर्शन बिगाड़ने में है । रिकॉर्ड - वेकोर्ड , मैडल- वैडल ये सब मिथ्या है । नश्वर है जी । माँ लक्ष्मी ही शाश्वत हैं, इस जगत में भी एवम वैकुंठ में भी ।


ये पिछले एक-दो साल में जंतर मंतर आदि जगह ऐसे ऐसे प्रदर्शन होने लगे की मुझे तो चिंता हो गयी थी की कहीं खाने खिलाने की हमारी परमपरा ना खतरे मे पड़  जाये।  जो नौजवान वहां नारे लगा रहे थे "मै  अन्ना हूँ ", "मैं  भी अन्ना  हूँ" उनकी समझ में ये भी नहीं आया की अन्ना तो  ब्रहमचारी हैं । शादी तो दूर,  बेचारो का किसी  अफेयर में भी नाम नहीं आया । भाई आप खुद सोच लें , आप अन्ना  के जैसे जीना चाहते हैं, या मानिये लालू जी, अमर सिंह जी के भाँती एक सुखी, समृद्ध परिवार के पोषक पुरुष के भाँती ? और वैसे भी  'professional ethics' , 'conflict of  interest' - यह सब पाश्चात्य दर्शन के विषय हैं। हमारे पास इन सब पर  विचार करने का फालतू वक़्त नहीं है । और भैया, अगर आप ये चाहते हैं की सरकारी दफ्तरों में आपके काम भी हो जाए और आपका कुछ खिलाना भी ना पड़े, तो आप जैसे  स्वार्थी के लिए भारत में तो कोई जगह है नहीं । आप भारत में रहकर अपना वक़्त और हमारा माहौल ख़राब ना  करें! वो तो राजा, कनिमोज़ी   ये सब हैं  तो खैरियत है की हमारी परम्पराओं पर कोई आंच नहीं ।

खैर दिवाली है जी । खाने खिलाने का त्यौहार है । दिल खोल के खाएं , और खूब खिलाएं !

 

Sunday, September 16, 2012

सॉफ्टवेर इंजिनियर

कोल्हू के बैल के विषय में तो आप सब ने सुना ही होगा।  यदि आप मेरी या मुझसे बाद की पीढ़ी  के हैं, तो देखने का मौका शायद ना मिला हो।  मगर बेचैन मत होइए, आप किसी भी सॉफ्टवेर उत्पादन करने की कंपनी में चले जायिए, आपको एक नहीं, हजारो बैल एक साथ कोल्हू में जुते  साक्षात दिख जायेंगे। मेरे जो बदकिस्मत  मित्र स्वयं को सॉफ्टवेर इंजिनियर कहते हैं  उन्होंने अक्सर  सुना होगा :release  'cycle', product  'cycle',software  development life 'cycle'  वगराह वगराह । कभी सोचा आपने की  आखिर ये सब  'cycle' क्यों है? हाँ, सही समझे - कोल्हू में बैल का movement भी cyclical था, क्योंकी गोल चक्कर का कोई छोर  नहीं होता, कोई अंत नहीं होता, आप काल चक्र में फंसे हुए हैं, अनंत काल तक।

वैसे सॉफ्टवेर इंजिनियर और इंजीनियरिंग के विषय में दुनिया में बहुत प्रकार की भ्रांतियां हैं । पहली भ्रान्ति तो नाम की है । नाम सुनने से ऐसा लगता है की कोई  वैज्ञानिक एवम  तकनीकी काम होगा। पर सच्चाई यह है, की  'जुगाड़' लगाने की कला को अंग्रेजी में सॉफ्टवेर इंजीनियरिंग कहते हैं। हाँ, अब आप समझे की हमारा भारत देश, जिसे कार का engine बनाने में पचास साल लग गए, वो अचानक सॉफ्टवेर इंजीनियरिंग का गढ़ कैसे बन गया। भाई जुगाड़ जुटाने में भारतीयों का दुनिया में कोई मुकाबला है ही नहीं। इसीलिए तो, हमारा देश इस तीव्र गति से सॉफ्टवेर इंजिनियर पैदा कर रहा है (आप थोडा विशलेषण करें तो पायेंगे की केवल एक चीज सॉफ्टवेर इंजिनियर पैदा करने की गति  से तीव्र है - घोटालो के धन राशी  के बढ़ने की गति। शुक्र मनाइये की अभी सॉफ्टवेर इंजिनियर की संख्या  'हजार करोड़' की इकाई में नहीं नापते)

शायद, आपको मेरी बातो पे यकीन ना हो रहा हो, आप इसे हंसी-ठहाका  समझ रहे हो। चलिए आपको अपनी बात का अकाट्य प्रमाण देता हूँ। जिस तथाकथित प्रतिष्टित प्रौद्योगिकी  संस्थान में  मैंने सॉफ्टवेर इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की वहां छात्राओं की उपस्थिति आटे  में नमक  बराबर थी। और जहाँ तक में समझता हूँ , देश के अधिकतर इंजीनियरिंग कॉलेज में यही हाल है। अब जरा सोच के के देखिये की आखिर इस क्षेत्र  में  महिलाओ की  इतनी कमी क्यों है ? भाई आपने कभी कोल्हू की गाय  सुनी है? जी नहीं, होती ही नहीं, तो सुनेंगे कैसे? कोल्हू में तो  बेचारा बैल ही जुतता है। जो ज्ञान मुझे आज प्राप्त हुआ, मेरे देश की  छात्राओं को वो बोध दस साल पहले ही था!

अब जो लोग इस क्षेत्र में नहीं हैं, वो कहेंगे की भाई कैसी बात कर रहे हो।सॉफ्टवेर के लोग तो इतने cool दिखते  हैं । फसबूक खोल के देख लो - कोई गीत गा रहा है, कोई पर्वतारोहण कर  रहा है, किसी को फोटोग्राफी में महारथ हासिल है । अब इसका जवाब थोडा पेचीदा  है । आप लोगो को याद होगा की बचपन में सातवी- आठवी कक्षा में बच्चो में होड़ रहती है - फर्स्ट आने आने की, सेकंड आने की (और बच्चो में ना भी रहे तो उनके माता - पिता पड़ोसियों से यही होड़ लगा लेते हैं की तुम्हारा बच्चा  क्या आया मेरा तो ये आया) । अब ये जो सॉफ्टवेर इंजिनियर है, ये बेचारा इस होड़ से उम्र भर  बाहर  ही नहीं आ पाता । गलती इसकी नहीं है, कोल्हू के मालिक सभी बैलो  को इस  होड़ में चक्कर कटाते हैं,कि  जो जितनी तेजी से इन release  'cycle', product  'cycle' कि  परिकृमा करेगा उसे उतना अधिक  चारा  मिलेगा। अब सप्ताह में   पांच दिन इस होड़ में रहकर, बचे दोनों दिन यह प्राणी दूसरी होड़ में लग जात है :  स्वयं को दूसरो से  ज्यादा cool दिखाने  की होड़।यूं  समझिये की वीकेंड पे होने वाले अंधाधुन्द फोटो अपलोड, इस वीकेंड की होड़ का नतीजा हैं। इसीलिए तो ये प्राणी किसी दर्शनीय स्थल पे पहुँच के ,प्राकृति  का आनंद बाद में लेता है, फोटो पहले अपलोड करता है। यही नहीं, कुछ  सॉफ्टवेर इंजिनियर की तो जिंदगी का दिन फसबूक से शुरू  और youtube  पे ख़तम होता है ।  पता नहीं पिछले एक दशक में ये दोनों अविष्कार ना हुए होते तो इन सॉफ्टवेर इंजिनियर का क्या होता । ख़ैर मेरी पीढ़ी तक तो बात फिर भी सही है, आने वाली पीढ़ी से तो आप नाम पूछोगे तो ईमेल में लोगिन करके, अपनी प्रोफाइल में  जाके नाम देखना पड़ेगा।

अब तो आपको भरोसा हो ही गया होगा की मैं आप को सत्य बता रहा हूँ। यदि नहीं तो एक छोटा सा experiment खुद करके देख लें। Bangalore जाके कहिए  की  आप सॉफ्टवेर इंजिनियर हैं। Electrician  से लेकर काम वाली बाई तक आपको हर काम का दुगुने से तिगुना दाम बताएँगे। और तो और traffic police वाला भी बिना बात का चालान काटेगा ।  जैसे पूरा शहर आपसे चिल्ला के कहेगा की भाई  सॉफ्टवेर इंजिनियर होना, स्वयं को महामूर्ख स्वीकार करने जैसा है ।



 

Wednesday, July 4, 2012

जानिये NRI को

 "धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट का" ऐसी कहावत बचपन में पढ़ी थी। पर इसका भावार्थ अब जाके समझ आया। अब NRI होने की प्रक्रिया में घर कोनसा है और घाट कोनसा ये तो पता नहीं पर इतना अवश्य  कह सकते  हैं की कुत्ता ......ammmm चलिए छोडिये कुत्ते को...आपको NRIs के बारे में बताते हैं। एक जुमला अक्सर सुना होगा आपने - ABCD(American  Born  Confused  Desi) - पर आपको बता दूं , confused  होने के लिए अमरीका  में पैदा होने की कोई आवश्यकता नहीं। यदि आप भारत में जन्में हैं, खुद को जवान समझते हैं, और पढ़ा लिखा भी मानते हैं, तो confused type  के तो आप भी होंगे ही। NRI  इन्ही confused लोगो में से उपजी वो प्रजाति है, जो अपने को बाकी से श्रेष्ठ, निपुड एवम होशियार समझती है । इस प्रजाति की पहचान , एकदम आसान । आगे के blog  मे मै आपको यही पहचान सिखाता हूँ।

NRI  की पहली निशानी ये, की ये हर बात में दुसरे देश को याद करते हैं। या यूं समझिये की घर पे होते हैं तो घाट को और घाट  पे होते हैं तो घर को । मिसाल के तौर पे, आप इन्हें अमरीका में पर्वत श्रृंखला में hike पर ले जाइये । ऊपर पहुच के कहेंगे "यार यहाँ ठण्ड में अगर एक चाय की दूकान होती जहाँ गरम चाय और समोसे मिल जाते तो क्या बात थी "। और सही भी है, 1-2 energy  bars से भारतीय पेट को संतुष्टि  नहीं मिल  सकती।अब इसी प्राणी को हिंदुस्तान के किसी दर्शनीय स्थल ले जायें।  रास्ते में पड़े चाय के plastic  के  cup देखते ही ऐसे  घर्णा से बोलेगा "In the States  you  cant  throw  stuff  like  this". यही नहीं आवाज़ में accent  भी ऐसा होगा की साथ के लोगो में किसी को इस बात में शंका ना रह जाये की आप अमरीका से तशरीफ़ लाये हैं।

दूसरा, अगर आपको कभी यह जानना हो की India  आखिर क्यों तरक्की नहीं कर रहा, इस प्रजाति का कोई भी  नमूना पकड़ लीजिये । यूं समझिये की हर NRI  स्वयं को इस विषय में प्रकांड पंडित समझता है। प्रत्येक NRI  मानता है की अगर भारत सरकार उससे सलाह ले ले, तो भारत भी पश्चिमी राष्ट्रों की तरह विकसित देश बन जाए। और चूँकि भारत सरकार ऐसा करेगी नहीं, इसलिए "इंडिया का कुछ नहीं हो सकता" इनका favourite  तकिया कलाम होता है। कुछ NRI  इसका मिलता जुलता अंग्रेजी का जुमला "That  IS the problem with India" पसंद करते हैं । अब भारत में इतनी विविधता है, तो थोड़ी विविधता तो NRIs  में भी होगी ही।

तीसरा, हर NRI  2 साल बाद  स्थाई रूप से India  लौट रहा होता है ।कारण ये की वह  तथाकथित रूप से अपने देश को बड़ा miss  करता है । दूसरा यह, की पश्चिमी देश तो संस्कृति विहीन, वैचारिक  रूप से खोखले, उपभोगवादी सभ्यता हैं, और हमारे NRI  मित्रों का ऐसी जगह मन नहीं लगता। अब यह अलग बात है, की dollar की चाह में अपने देश, दोस्तों को छोड़  वह आया, पर  materialistic तो  अँगरेज ही  हैं ।

अब बताने को तो और भी बहुत कुछ बता सकता हूँ, इस जाती के विषय में जिसका मै एक (अ)सम्मानित सदस्य हूँ । पर आपके समय का मान रखते हुए, मै  फिलहाल मौन होता हूँ , टिप्पड़ियो से प्रोत्साहन देंगे तो बाकी के रहस्य जल्दी ही !  


Monday, May 28, 2012

Pranav da ko Bharat Ratna

Baat hai 2025 ki, jee haan bhavishya ki! Apne Pranav Mukherjee ko rashtra ka sarvochh samman Bharat Ratna mila hai, kyuki unki neetiyo ke chalte Bharat fir se vaigyanik aavishkaro ka grah ban gaya. Bharat mein aaj paani se chalne vaali car daudti hai, desh mein avishkar pe avishkar ho rahe hain. Pranav da, press conference kar rahe hain, aayie jaanein ki ye sab aakhir kaise hua:




Vishal vistrit samaroh, chakachaundh beech Pranav da muskaye,
note aur pushp se bani mala pehan, thoda sa sharmaye,
Bharat ko vigyan path pe daalne mein role tha inka adbhut,
Aise mantri ko fir aakhir kyu naa sarvocch samman diya jaaye!

"How you made this possible" amreeki navyuvti ne saval daaga,
dekh gori kaaya , Pranav da ki boodhi asthiyo mein sahas jaaga,
josh se bole " The mother of invention is necessity,
And dear lady, how can there be neccassity without scarcity?"

Moorkh shrotagad mein jo ye scholarly uttar naa samajh paaye,
unke chehro pe confusion dekh, Pranav mand mand muskaye,
"humne kari thi research ki kyu nahi hote bharat mein avishkar,
kyu angrej banate hawai jahaaj, kyu german hi banaate acchi car?"

"angrej log bechare gareeb jinhe kami rehti thi kutch samaan ki,
hum maa laxmi ki santaaniein, hamein aadat aaraam ki,
isiliye meine petrol ke daamo ko pratimah anavarata badhaya,
us din ke baad se ek bhi bhartiye, kabhi chain se naa so paaya!"

"ghar mein to sabke khade the scooter aur car,
par petrol bina ho gaye saare hi vaahan bekar
is scarcity se fir hue, ek ke baad ek aavishakar,
aaj petrol se nahi, paani se chalti hai made in india car!"

uttar samajhte hi doosre angrej ne counter question maara,
angrejo ko "gareeb" sun peedit hua tha vo bechara,
"how dare you call us poor, when richest people live in america,"
is nadaan ne moorkhta se Pranava da ko lalkaara!

Pranav daa ne bhi uttejit ho manch se uttar diya karaara,
"dhan ko sada chhupakar rakhna, aisa praachin paath hamara,
varna jo kahin cabinet apne real assets declare kar de,
tumhare Bill, Buffet jaiso ko to Mayawati akele cover kar de!"

Itne mien kisi ne last question, future plan pooch daala,
Pranav daa ne haath jod vinamrata se utaari pushp maala,
"aage aage hum paani bhi peena doobhar kar denge,
is desh mein logo ka kaise bhi jeena doobhar kar denge!!"


Saturday, January 21, 2012

Jannat mein liqour prohibition

Hua youn ki Jannat mein madira pe prohibition laga diya gaya. Aise mein Sriman Mohammad Ali Jinnah, tahelte hue Yamlok, Nehru se milne pahunche. Aage ka haal:



"hi Jawahar", achanak sunke Nehru ji sakpakaye
dekh Jinnah ko yamlok mein, thoda sa ghabraye
formality mein apna khaali haath milane ko badhaya,
kisi prakar dwesh ko apne kaabo mein rakh paye

"kaise hua jannat-e-firdaus se is or aanaa,
hum to samjhe the bhool chuke tum hisab puraana"
vaadi kutil, nayan teeksha dekh Jinnah muskaye,
"kyu bhai, lagta nahi ki tum bhi humko bhool paaye"

"darasal Jannat mein maykhano pe laga diya prohibition
aur yahan to tum gatak rahe ho whisky bina inhibition
socha barso baad hum bhi purane dosto se mil aayein
aur lage haath urvashi menka ke bhi darshan ho jayein"

"besharm, na-maqool" youn kehkar nehru ne lataada
taan bhhrakuti teekhi, jaise isharo mein bhi fatkaara
"72 kam pad gayi aur janaab yahan najar daudaate hain
hum to 2-4 apsaraon se jaise taise kaam chalate hain"

"chhodo yaar tum gussa aur peg banao,
aur kya chal raha hai India mein thoda batao
tumhari Indian govt aakhir mujhe kyu nahi karti sammanit
arrey ghooro mat aise yaar jara brandy pilao"

"tumko"" tumko!" jaise apni shruti pe hi bharosa naa kar paaye
peg banate banate hi, Nehru jor se chillaye
"kyu karne lagi tumko Indian govt sammanit
tum jaise ko to hum jooto ka haar pehnaaye"

chehre pe Jinnah ke muskaan abhi bhi gayi nahi
"dekho Jwahar bado ka youn apmaan karna sahi nahi,
mujhe yakeen nahi hota tum abhi bhi aise moorkh ho
Badappan hai mera jo aajtak ye baat meine kahi nahi"

"India ko sada sada maanne honge mere aehsaan
kya tarakki kar paata India, jo naa hota Pakistan?
tumhe nahi akal mein tumhe samjhata hoon,
aaj tumhari buddhi ke kapaat mein khol jaata hoon."

"Kasab hota Indian citizen, jo naa hota Pakistan
Indian passport se hoti, kitne terrorists ki pehchaan
Akahnd Bharat mein fir milti sharad hamare Osama ko,
socho fir kya jawaab dete Manmohan, Barak Obama ko?"

"Rawalpindi ke general, Indian army mein jab bharte tum
Zulfikar Bhutto ke jaise, fansee se fir marte tum
Arthvyavastha ki tumhare fir kya hota haal?
India ki hoti vo haalat, jo Pakistan ki hai filhaal"

Sun faansee ki baat Nehru ekdum sihar gaye,
bhool dwesh saara, do hi minute mein bifar gaye,
"Award chhodo mein mandir tumhare banvaoonga,
Bahu Sonia ko turant telegram bhijvaaonga"

"Manthan mein vish peekar jaise mahaan hue Shiv Shankar
Aise hi partition kara, ahsaan kia tumne bhayankar"
Jab bhi peene ka man kare, bejhijhak aana mere paas
aur haan bata do agar koi apsara pasand ho khaas!"