Sunday, December 21, 2014

जानिये प्रतिभाशाली सॉफ्टवेयर इंजीनियर को

कुछ समय पहले मैंने आपको सॉफ्टवेयर इंजीनियर के बारे में बताया था । पर सभी सॉफ्टवेयर इंजीनियर एक जैसे नहीं होते, अपनी प्रतिभा के अनुसार सब अलग अलग तरक्की करते हैं । कुछ लोग इस तरक्की को पैसे या औहदे से नापते हैं, पर मै तो महात्मा गांधी का अनुयायी हूँ । मै मानता हूँ की मनुष्य की असली  पहचान उसके काम से होती है । तो अगर आप सुबह दफ्तर जाते हैं और देर शाम तक गधे की तरह काम करते हैं तो आप वो ही है … … जी हाँ गधे । वैसे इस क्षेत्र में गधो की कोई कमी भी नहीं , यूं समझिए की गधो को विशेष प्रेम सा है इस व्यवसाय से । अगर आप पुराने जमाने की शादी-ब्याह में आते जाते रहे हैं तो आपने देखा होगा की अक्सर कोई दूल्हे का मित्र होता है जो जाता तो ये सोचकर है की बारात में नाचेगा-खायेगा लेकिन वहां जाकर बाकी बारातियो के कपडे इस्त्री करता है । बस समझ जाइये यह व्यक्ति अगर बहुराष्टीय कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है तो वहां गधा ही है । अच्छा कुछ लोग इस खुशफहमी में भी रहते हैं की काम करने से काम सीखते हैं और काम सीखने से तरक्की होती है । भाई ऐसा मानना तो वैसे ही है की आपके घर के निर्माण में ईंटे ढोने वाला मजदूर अगर ज्यादा ईंटे ढोने लगे तो कांट्रेक्टर बन जायेगा । क्या गधा कभी ज्यादा कपडे ढोकर धोबी बना है  ?

प्रतिभा की अगली सीढ़ी में ऐसा इंजीनियर आता है जिसे सब मानते हैं की व्यस्त है मगर कोई नहीं जानता की किस काम में । इस श्रेणी का इंजीनियर कम से कम २ काम में माहिर होता है - एक फैंकना , दूसरा कामचोरी । जब इनसे काम का एस्टीमेट माँगा जाए तो ये दो से तीन गुना देते हैं ताकि काम मुश्किल भी दिखे और कोई और काम भी ना पकड़ाया जाए । आपके पुराने जमाने के शादी-ब्याह की बात करें तो कुछ भाई-बंधू ऐसे होते थे जो काम के वक़्त मुश्किल से ही खोजे जा सकते थे पर खाने के वक़्त हमेशा नजर आते थे । ऐसे ही ये प्राणी morale events, शिपिंग पार्टी आदि में ऐसे जोश से नजर आएगा जैसे प्रोडक्ट रिलीज़ होने  की सबसे ज्यादा ख़ुशी दुनिया में इसी को है । ऐसा प्राणी गलियारों में तेजी से चलता हुआ नजर आता है जैसे हमेशा किसी ख़ास मीटिंग के लिए लेट हो रहा हो । वास्तविकता में दूसरी बिल्डिंग जाकर चाय पीता  है । अब कुछ लोगों में ये प्रतिभा जन्म-जात होती है , कुछ अनुभव से सीख लेते हैं । कुछ नालायक नहीं भी सीखते, उनकी मदद भला कौन कर सकता है ?

इसी श्रेडी में जब एक-दो और खूबियां आ जाएं जैसे की आत्म-विशवास और अंग्रेजी मुहावरों की विस्तृत जानकारी, तो आप अगली श्रेडी में पहुँच जाते हैं । अब आपकी कंपनी भी आपको मात्र इंजीनियर नहीं कहती, विशिष्ट/विशेष/वरिष्ठ आदि आपके नाम के आगे लगाती है । आप मीटिंग्स में धीर-गंभीर मुद्रा में रहते हैं , यही सोच रहे होते हैं की कौनसे  अंग्रेजी के मुहावरे से अपनी बात शुरू करें । आपसे कुछ पुछा जाये तो आप पूरे विशवास से कहते हैं, 'आई विल गेट बैक टू यू' । फिर २-४ लोगों को ईमेल लिखते हैं और उनके जवाब संकलित करके मीटिंग में पूछने वाले को भेज देते हैं । इसी प्रकार एक मीटिंग में सुनी बात दूसरी मीटिंग में अपने आईडिया के तौर पे रख देते हैं । इसी तरह इधर की बात उधर करते हुए आप कंपनी में क्या वैल्यू ऐड कर रहे हैं ये तो स्वयं आप भी नहीं जानते, मगर जानने की जरूरत भी किसे है । अब आप काम नहीं करते, बल्कि दावा करते हैं की काम ड्राइव करते हैं ।  इस श्रेडी के लिए जरूरी प्रतिभा अनुभव से ही आती है।
software engineer

जब आत्म-विशवास और मुहावरो में आप और आगे निकल जाएं तो आप इंजीनियरिंग करियर की आखिरी सीढ़ी पर पहुँच सकते हैं । आपके औहदे से पहले अब इतने विशेषण हैं की आप खुद नहीं जानते । लोग आपको आर्किटेक्ट या चीफ आर्किटेक्ट आदि कहते है लेकिन आपको आर्किटेक्चर आदि में कोई रुचि नहीं । अब आपसे कोई कुछ पूछता है तो आप  'आई विल गेट बैक टू यू' नहीं कहते बल्कि उसी से वापिस इतने सवाल करते हो की आइन्दा कुछ  ना पूछे । मसलन आप कहोगे की तुझे ये करने की जरूरत ही क्या पड़ी , ये तो डिज़ाइन लेवल पे ही कोई गलती होगी । अगला समझायेगा तो कहोगे तुमने डिज़ाइन डॉक्यूमेंट किया है ? इसका यूज केस डायग्राम दो , क्लास डायग्राम दो , ये दो, वो दो, जब तक अगला  आत्म-ग्लानि से माफ़ी ना मांग ले । और फिर भी बाज ना आये , तो २-४ सवाल उसके प्रोजेक्ट को लेके ही दाग दो , मसलन तुम्हारे इस प्रोजेक्ट का मकसद ही क्या है , यूजर को क्या फायदा होगा , कंपनी को क्या फायदा होगा, बिज़नेस जस्टिफिकेशन क्या है । अपने प्रोजेक्ट एवं  नौकरी पे सवालिया निशान दिखते  ही सामने वाला भाग खड़ा होगा । इस प्रकार आप अब ना काम करते हों ना ही उसे  ड्राइव करने का दावा करते हैं । अब आप दावा करते है की आप 'ensure' करते हैं की काम होगा । कैसे - ये तो ना आप जानते हैं ना भगवान ।   

Sunday, November 2, 2014

भारत का काला धन विदेश में !

एक सच्चा देशभक्त होने के नाते मुझे ये जानकार बहुत दुःख हुआ की कई भारतियों का काला धन विदेश में है । इस मामले की तो वास्तव में गहरी  जांच  होनी चाहिए । इस देश में सुविधाओं की, व्यवस्थाओं की, ऐसी क्या कमी रह गयी जो मेरे देशवासियों को काला धन विदेशो में रखना पड़ा ? कोई पढाई करने विदेश जाये, बात समझ आती है, इंडिया में opportunity नहीं होगी । कोई नौकरी करने विदेश जाये, समझ आता है, opportunity नहीं होगी । मगर कोई  काला धन जमा कराने विदेश जाए !! मेरी समझ से तो परे  है भाई । हमारे देश में मंदिर के चढ़ावे से लेके, चुनाव के चंदे तक सब ब्लैक में ही होता है । प्रॉपर्टी खरीदने जाओ, तो पेमेंट ब्लैक में करो । व्यापार करने की पूरी बिज़नेस cycle ब्लैक में करने की व्यवस्था है - जमीन खरीदें ब्लैक में और रजिस्ट्रेशन में छूट पाएं , विदेश से मशीन ब्लैक में मंगाए, कस्टम में छूट पाएं , आधा माल ब्लैक में बेचें, इनकम टैक्स में छूट पाए, और कस्टम, टैक्स आदि के ऑफिसर्स को वोही ब्लैक मनी रिश्वत में दें ताकि वे आगे अपने घर, अपनी प्रॉपर्टी में काला धन इन्वेस्ट करके इस परंपरा को ऐसे ही आगे बढ़ाएं । हजारों दलालों, बिचौलियों की नौकरियां काले धन पे टिकी हैं । इतनी अच्छी व्यवस्था के बावजूद अगर कुछ लोगो को लगा की विदेश में ब्लैक मनी रखने में फायदा है, तो यह तो आत्मावलोकन का विषय है ।

मैंने ये ज़िक्र एक वित्तीय मामलो  के जानकार मित्र से किया तो वह बोला की विदेशी बैंको में प्राइवेसी का ख्याल ज्यादा रखा जाता है । मैंने कहा भाई ये तो सरासर गलतफमही फैलाई जा रही है, भारतिय व्यवस्थाओं को नीचा दिखाने के लिए । विदेशो में प्राइवेसी की कोई क़द्र नहीं है । सब पोलिटिकल पार्टी चिल्ला चिल्ला के बताती हैं की हमें किसने कितना पैसा दिया । सब प्रॉपर्टी का लेन-देन सरकार को बताना पड़ता है । प्राइवेसी की क़द्र तो हिन्दुस्तान में ही है ।  कोई रईस किसी राजनेता को कितना पैसा, कब और कैसे देता है ये सब उन दोनों का प्राइवेट मसला है । हमारे यहाँ सरकार या जनता इन सब के बीच में नहीं पड़ती । पारदर्शिता के हम सख्त खिलाफ हैं, फिर चाहे वो कपडे हो या सरकारी काम काज़ । इसलिए अमरीकी काला बाजारी स्विस बैंक अकाउंट खोलते हैं तो उनकी मजबूरी समझ आती है ।  अगर भारतीय काला बाजारी उनकी होड़ में स्विट्ज़रलैंड में अकाउंट खोल लिए, तो मैं  तो इसे मूर्ख नक़ल ही कहूँगा ।  हमारे राजनेताओं की मेह्नत का ही नतीजा है की ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल आदि सँस्थाए हमें ९४वे  स्थान पे डालती हैं । और ये कोई ७००-८०० लोग जाने किस प्रलोभन में आकर विदेशों में धन रखने लगे ।

चलो अच्छा है इस प्रकरण की जांच आयकर विभाग के लोग कर रहे हैं । इन लोगो से बेहतर कौन जान सकता है की भारत में काला धन कहाँ और कैसे छिपाया जाये । उम्मीद है की ये लोग विदेशी खाताधारकों को कुछ सद्बुद्धि और नुस्खे देंगे ताकि आगे से भारत का काला धन यही फले-फूले । मैं  तो कहता हूँ, जांच के बाद इन्हे सरकार को स्कीम/स्कैम  सुझाना चाहिए जिससे भारतीय ही नहीं , पूरे विश्व के भ्रष्ट लोग अपना ब्लैक मनी इन्वेस्ट करने भारत ही आएं ।

होनहार नवयवुकों को यही कहना चाहूँगा की इस सब ड्रामें में ना आए। वेस्ट हमसे ज्ञान - विज्ञान में आगे हो सकता है, भ्रष्टाचार में हम उनसे सदियों आगे हैं  ।  आप लोग जब भी काला धन कमाएं , उसे देश में ही रखे , उससे सुरक्षित कोई और जगह विश्व में हो ही नहीं सकती । भला आजतक हिंदुस्तान में रखा किसी का काला धन जप्त हुआ है ?


Saturday, June 7, 2014

जानिए ब्लॉग लेखक को


 होमोहबिलिस, होमोएरेक्टस, होमोसपीएन  आदि के विकास क्रम के विषय में आपने सुना ही होगा । बस ब्लॉग लेखको को समझना है, तो यूं सोच लीजिए की Homosapien के बाद मनुष्य विकसित होकर ब्लॉग लेखक बन गया । और आप ऐसा माने या ना माने, कम  से कम  ब्लॉग लेखक तो अपने बारे में यही मानते हैं कि साधरण मनुष्य की तुलना में उनका विकास कुछ ज्यादा हो गया है । इसीलिए मुफ्त में ज्ञान बाँट, बाकी मनुष्यजाति को राह दिखाना अपना कर्त्तव्य समझते  है ।

अच्छा, ये लेखक जिस विषय में लिखता है, अक्सर उसने उस क्षेत्र में लिखने के सिवा कोई योगदान नहीं दिया होता । मसलन लेखक खुद किसी कंपनी में मामूली इंजीनियर होगा पर ब्लॉग लिखकर बड़े से बड़े सीईओ को बता देगा की तुम्हारी कंपनी क्यों पिट रही है । वैसे तो यह प्रतिभा साधारण लोगो में भी देखने को मिल जाती है। कोई खुद कितना भी बड़ा अनाडी क्यों ना हो, दूसरो को सलाह देने या आलोचना करने से कब पीछे हटता  है ? बस यूं समझ लीजिए जिन लोगो में ये प्रतिभा जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है वो frustrate होकर ब्लॉग लिखना चालू कर देते हैं । अनुभव से बता रहा हूँ, फ़्रस्ट्रेशन दूर करने का ब्लॉग से बेहतर कोई उपाए नहीं । मिसाल से तौर पे, आपने खुद कभी क्रिकेट का बल्ला ना पकड़ा हो पर आप तेंदुलकर की बैटिंग का विशलेषण कर उसको बता देंगे की उसकी कवर ड्राइव में क्या गलती है । अब जाहिर है आपकी फसबूकि मित्र-मण्डली में (आपके जैसे) और भी मूर्ख होंगे ही, जो आपके विश्लेषण का विश्लेषण कमेंट्स में करना शुरू कर देंगे । हो सकता है २-३ वाह-वाही भी मिल जाए । पिछले दिनों चुनावी मौसम था । हर कोई चुनाव विशेषज्ञ बना बैठा था । ब्लॉग लेखको की चांदी - राजनीति पे ब्लॉग लिख दो, देश और साहित्य दोनों की सेवा कंप्यूटर पे बैठे बैठे सरलता से हो गयी ।  कुछ तो टीवी पे २-४ ओपिनियन पोल देखके उन्हें अपना आकलन कहके दोहराने लगे । और वैसे भी नतीजों के बाद कौन तुमसे पूछने आ रहा है की तुमने क्या छापा  था । और नतीजे आ जाए फिर हारने वाले को २-४ राय दे दो, माने पढ़ने वाले को लगे की अगर चुनाव से पहले भाई इनसे सलाह ले लेता तो हारता ही नहीं । खुद की हैसियत चाहे मुन्सिपलिटी के चुनाव में १० वोट लेने की ना हो!

यूं तो ब्लोगेर्स कई प्रकार के होते हैं पर मोटे तौर पे इन्हे निम्नलिखित तीन-चार  उपजातियो में बांटा जा सकता है :

रायचंद - आपका काम है राय देना, कोई ले या ना ले, ये उसकी प्रॉब्लम । आजकल नया फैशन है, ये काम 'ओपन लेटर' लिखके करने का । प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति आदि अक्सर आपकी राय के पात्र होते है ।

आलोचक या निन्दकारी  - ऐसा नहीं है की निंदा रस  की उपासना केवल ब्लोग्गेर्स तक सीमित हो। घरेलू महिलाओं से लेकर ऑफिस के कैफेटेरिया तक सभी प्राणी इस रस  का आनंद लेते पाये जा सकते हैं । यही काम ब्लॉग में करके आप पाठको को निंदा-सागर में डुबकी लगाने का आनंद देते हैं ।

फ़र्ज़ी शोधकारी  - अक्सर ये लोग जीवन में पीएचडी आदि करने की हसरत रखते थे, पर समय या अक्ल की कमी के चलते ये हसरते दिवास्वप्न रह गई । इनका मोडस-ओपेरंडी ये है की Wikipedia पे २-४ आर्टिकल पढ़के ब्लॉग रूप में छापके ऐसा दिखाओ की दुनिया में सारा मौलिक शोध आपका ही है ।

ट्रैवलिंग ब्लॉग लेखक - ये ब्लॉग कृतक आजकल जन्मी फोटोग्राफर जाती का अपभ्रंश रूप है । जिन्हे अपने चित्र लगाने भर से चैन नहीं मिलता वो साथ में ये भी बखान कर डालते हैं की कहाँ जाके क्या खाया , क्या उल्टा , क्या धोया क्या सुखाया । इन्हे डींग हांकने का विशेष शौक होता है, कहीं दो मील चलके गए तो बखान ऐसे लिखेंगे जैसे क़िला फ़तेह किया हो । पृष्टभूमि सदा एक ही रहती है - वहां पहुचने में कितनी तकलीफ हुई 'बट  हाउ एवरीथिंग वास वर्थ इट'! खैर इनके पाठको को इनके निजी क्रिया-कलापो में कोई रुचि हो न हो, इनके चित्र देखके जल भी लेते हैं और आनंद भी उठा लेते हैं ।


खैर मुझे आशा की आने वाले समय में ब्लॉग लेखको की जाति और फले - फूलेगी । और हाँ मुझे इन उपजातियों में डालने की चेष्टा न करें !